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________________ [73 केतुमती को सब कुछ कह सुनाया। यह सब सुनकर केतुमती के हृदय को ऐसा आघात लगा कि वह मूच्छित होकर गिर पड़ी। कुछ देर पश्चात् संज्ञा लौटने पर वह प्रहसित से बोली, 'हे कठोरहृदय प्रहसित, मरने को उत्सुक अपने मित्र को वन में अकेला छोड़ कर तुम यहाँ कैसे आए ? हाय ! मुझ पापिनी ने बिना विचारे अंजना-सी वास्तविक निर्दोष स्त्री को घर से प्रताड़ित कर कितना नीच कर्म बांधा है। उस पर मैंने मिथ्यादोष लगाया उसका फल तो मुझे अभी ही मिल गया। सचमुच अति उग्र पाप और पुण्य का फल मनुष्य को इस जीवन में ही मिलता है।' (श्लोक २३३-२३७) रोती हई केतूमती को किसी प्रकार शान्त कर राजा प्रह्लाद पवनंजय और अंजना की खोज करने निकले । उन्होंने अपने मित्र विद्याधर राजाओं के पास दूत भेजकर पवनंजय और अंजना की खोज करने को कहा, साथ ही साथ स्वयं भी अनेक विद्याधरों को साथ लेकर पुत्र और पुत्रवधू की खोज करते-करते भूतवन नामक अरण्य में पहुंचे। वहाँ उन्होंने पवनंजय को देखा। पवनंजय चिता प्रज्वलित कर उसके बगल में खड़े होकर बोल रहे थे-'हे वन देवताओ ! मैं विद्याधर-राज प्रह्लाद का पुत्र हूं । मेरी पत्नी का नाम अंजना है। निर्दोष और सती होने पर भी विवाह के दिन से ही मुझ दुर्बुद्धि ने उसको यातनाएँ दीं। उसे अपमानित कर प्रभु के कार्य के लिए मैं युद्ध में गया। राह में देवयोग से मुझे सुबुद्धि आई। अतः वहाँ से रात्रि में उसके पास गया। उसके साथ स्वच्छन्द रूप से विहार किया। मैं आया था इसके प्रमाणस्वरूप मैंने उसे अपनी मुद्रिका दी और माता-पिता को बिना बताए मैं फिर लौट आया। वह उस दिन गर्भवती हो गई। मेरे दोष से मेरे माता-पिता ने उसे दूषित समझकर घर से प्रताड़ित कर निकाल दिया। नहीं जानता वह अभी कहाँ है ? वह पहले भी निर्दोष थी अभी भी निर्दोष है; किन्तु मेरे दोष और अज्ञान के कारण न जाने वह किस दुर्दशा को प्राप्त हुई है। मुझे धिक्कार है ! मुझ-से पति को धिक्कार है ! मैंने सारी पृथ्वी खोज डाली; किन्तु भाग्यहीन को जैसे रत्नाकर समुद्र में भी रत्न नहीं मिलता उसी भाँति मैं भाग्यहीन उसे कहीं नहीं पा सका। समस्त जीवन विरहानल में दग्ध होकर मैं बच नहीं सकूँगा। इसलिए आज
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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