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________________ [67 फेंक देते ?' (श्लोक १४०-१४१) उसी समय महोत्साह नामक मन्त्री बोला, 'राजन्, ससुराल में दुःख मिलने पर कन्याएँ पितृगह में आश्रय लेती हैं। यह भी तो हो सकता है सास ने उस पर कुपित हो जाने के कारण मिथ्या दोषारोपण कर उसे घर से निकाल दिया हो । अतः जब तक दोषी या निर्दोष प्रमाणित नहीं हो जाती तब तक गुप्त रूप से उसका पालन करें। अपनी कन्या समझ कर उस पर कुछ दया करें।' (श्लोक १४२-१४४) राजा बोले, सासुएँ तो ऐसी ही होती हैं; किन्तु बहुओं का ऐसा चरित्र कहीं नहीं मिलता। मैंने यह भी पहले सुना था कि पवनंजय अंजना को चाहते नहीं हैं। अजना पर उनका स्नेह नहीं था। तब पवनंजय द्वारा वह गर्भ धारण कैसे कर सकती है ? अतः वह सर्वथा दोषी है, उसकी सास ने ठीक ही किया है कि उसको घर से निकाल दिया। यहाँ से भी उसे तुरन्त निकाल दो। मैं उसका मुह भी देखना नहीं चाहता। (श्लोक १४५-१४७) राजा का यह आदेश प्राप्त कर द्वाररक्षकों ने अंजना को वहाँ से चले जाने को कहा। अंजना दीन बनी रोते-रोते वहाँ से चली गई। लोग दुःखी मन से उसकी दुर्दशा देखने लगे। (श्लोक १४८) भूख-प्यास से पीड़ित, क्लान्त, दीर्घ निःश्वास छोड़ती हुई, अश्रु प्रवाहित करती हुई, पाँवों में काँटे चुभ जाने के कारण जो रक्त बह रहा था, उससे धरती को आरक्त करती हुई अंजना धीरेधीरे जा रही थी। दो कदम चलते न चलते वह गिर-गिर जा रही थी, ऐसे समय वह किसी वृक्ष का सहारा लेकर विश्राम कर लेती। इस भाँति दिशा-विदिशाओं को क्रन्दन से गुजित करती हुई अंजना सखी के साथ जा रही थी; किन्तु वह जिस किसी भी ग्राम या नगर में गई सभी उसे भगाने लगे क्योंकि राजपुरुषों ने पहले ही जाकर उसको आश्रय न देने की सूचना सबको दे दी थी। इसलिए उसे कहीं भी रहने का स्थान नहीं मिला। (श्लोक १४९-१५१) __ इसी प्रकार चलती हुई अंजना ने एक महावन में प्रवेश किया। वहाँ पर्वत श्रेणियों से घिरे एक वृक्ष के नीचे बैठकर वह विलाप करने लगी-'हाय, मैं कितनी हतभागिन हूं कि गुरुजनों ने
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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