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[65 सिद्धि के पश्चात् तुरन्त लौट आएँ। तदुपरान्त मैंने आज ही ऋतु स्नान किया है। अतः यदि मैंने गर्भधारण कर लिया तो आपकी अनुपस्थिति के कारण दुर्जन मेरी निन्दा करेंगे।' (श्लोक ११४-११५)
पवनजय बोले 'मानिनि, मैं शीघ्र ही लौट आऊँगा। मेरे लौट आने पर कोई नीच भी तुम्हारी निन्दा नहीं कर सकेगा। फिर भी मैं आया था इसके प्रमाण रूप मेरी नामाङ्कित मुद्रिका तुम्हें दे रहा हूं। यदि ऐसी परिस्थिति आ ही जाय तो तुम उनको यह मुद्रिका दिखा देना।'
(श्लोक ११६-११७) ऐसा कहकर पवनञ्जय प्रहसित सहित आकाश-पथ से स्वसैन्य में लौट गए। वहां से देवों की तरह आकाश-पथ से ही लङ्का पहुंचे। लङ्का में जाकर उन्होंने रावण को प्रणाम किया। तरुण सूर्य-से कान्तिमान रावण और पवनञ्जय अपनी-अपनी सेना लेकर वरुण के साथ युद्ध करने के लिए पाताल में प्रविष्ट हुए।
(श्लोक ११८ १२०) अंजना सून्दरी के उसी दिन गर्भ रह गया। फलतः उनके सारे अवयव सुन्दर हो गए । कपोल पाण्डुवर्ण हो गए, स्तनाग्र श्याम वर्ण । गति मन्द हो गई, नेत्र विशेष रूप से विशाल और उज्ज्वल । इसके अतिरिक्त गर्भ के अन्य लक्षण भी उसकी देह पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे। यह देखकर उसकी सासू तिरस्कारपूर्वक बोली, 'ओ पापिनि ! उभय कुल को कलङ्कित कर तूने यह क्या किया? पति जब विदेश में है तब तू गभिणी कैसे हो गई ? मेरा पुत्र तुझसे घणा करता था। मैं सोचती थी वह अज्ञानी है जो तझे दूषित समझता है । मैं तो आज तक नहीं जान पायी कि तू व्यभिचारिणी
(श्लोक १२१-१२५) ___ इस प्रकार तिरस्कार होने पर अंजना ने अश्रु प्रवाहित कर पति समागम की साक्षी रूप वह मुद्रिका दिखाई। उसे देखकर केतुमती और जल उठी और लज्जावनत अंजना को घृणा भाव से बोली-'ओ दृष्टा, तेरा पति तेरा नाम तक नहीं लेता था। उसके साथ तेरा समागम कैसे हो सकता है ? व्यभिचारिणी स्त्रियाँ लोगों को ठगने के ऐसे कितने ही उपाय जानती हैं। स्वच्छन्दचारिणी ! तू क्यों यहीं खड़ी है ? अभी तुरन्त मेरा गृह छोड़कर पितृगृह चली जा । तुझ जैसी स्त्री के लिए मेरे घर में कोई जगह नहीं है।'
(श्लोक १२६-१२९)