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________________ 64. करते ? आज बाईस वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी न जाने क्यों मेरे प्राण नहीं निकलते ?' (श्लोक १००-१०२) उसकी ऐसी बात सुनकर उसके दुःख के कारणरूप पवनञ्जय ने कक्ष में प्रवेश किया और वाष्पसिक्त कण्ठ से बोले-- 'प्रिये ! मैं मूर्ख होकर भी स्वयं को महाज्ञानी समझ रहा था। निर्दोष पत्नी को सदोष समझकर विवाह के पश्चात् ही उसका परित्याग कर दिया। मेरे ही कारण तुम्हारी यह दशा हुई है । सम्भवतः विरह में तुम्हारी मृत्यु ही हो जाती; किन्तु मेरे भाग्यवश ही तुम जीवित हो।' (श्लोक १०३-१०५) ___ इस प्रकार कहते हुए अपने पति को देखकर अंजना खड़ी हुई और पर्यंक पर भार देकर खड़ी रही। हस्ती जिस प्रकार सूड से लता को वेष्टित करता है उसी प्रकार पवनञ्जय ने अंजना को वेष्टित कर पर्यंक पर बैठाया और बोले-'प्रिये! मुझसे क्षुद्र व्यक्ति को, जिसने तुम-सी निरपराध पत्नी को सताया, क्षमा करो।' (श्लोक १०६-१०८) पवनञ्जय का कथन सुनकर अंजना बोली-'नाथ ! आप ऐसी बात मुह पर न लाएँ। मैं तो चिरकाल से आपकी दासी हूं । एतदर्थ मुझसे क्षमा याचना करना आपके लिए अनुचित है।' श्लोक १०९) तत्पश्चात् बसन्ततिलका और प्रहसित कक्ष से बाहर निकल गए। कारण, पति-पत्नी के एकान्त-मिलन के समय विवेकशील व्यक्ति उस स्थान का परित्याग कर देते हैं। (श्लोक ११०) तदुपरान्त पवनञ्जय और अंजना स्वच्छन्द यौवन-सुख का भोग करने लगे। रति-रभस में वह रात्रि उनके लिए एक मुहूर्त में व्यतीत हो गई। सुबह का प्रकाश देखते ही पवनञ्जय बोले-'प्रिये, मैं विजय के लिए प्रस्थान करता हूं। यदि गुरुजन जान जाएँगे कि मैं लौटकर आया हं तो अच्छा नहीं होगा। तम मन में कोई खेद नहीं रखो । मैं रावण का कार्य सिद्ध कर शीघ्र ही लौट रहा हूं। तब तक अपनी सखी के साथ सुखपूर्वक समय व्यतीत करो।' (श्लोक १११-११३) अंजना बोली-'आप जैसे वीर के लिए यह कार्य सिद्ध ही है, समझ लीजिए । यदि आप मुझे जीवित देखना चाहते हैं तो कार्य
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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