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________________ 58 मानस सरोवर के तट पर अवस्थित हुए। (श्लोक १२-१६) पवनंजय ने अपने मित्र प्रहसित से पूछा-'मित्र क्या तुमने कभी अंजना सुन्दरी को देखा है ?' (श्लोक १७) प्रहसित ने हँसते हुए जवाब दिया-'हाँ देखा है। वह रम्भादि अप्सराओं से भी अधिक सुन्दर है। यह तो तुम उसका रूप देखकर ही समझ जाओगे। मनुष्य तो दूर स्वयं वहस्पति भी उसके रूप का वर्णन नहीं कर सकते।' (श्लोक १८-१९) पवनंजय बोले, 'मित्र, विवाह का दिन तो बहुत दूर है और मेरा हृदय उसे देखने को उतावला हो रहा है। प्रियतमा को देखने के लिए उत्सुक पुरुष के लिए एक घण्टा भी एक दिन के समान होता है और एक दिन एक महीने के समान । अभी तो विवाह के तीन दिन बाकी हैं।' (श्लोक २०-२१) प्रहसित बोला, 'मित्र, धैर्य धरो। आज रात को ही हम उसके प्रासाद में उपस्थित होंगे। हम उसे गुप्त रूप से देखेंगे। (श्लोक २२) तदनुसार वे लोग रात के समय आकाश पथ से अंजना सुन्दरी के प्रासाद में उपस्थित हुए और गुप्तचरों की भाँति आड़ में खड़े होकर अंजना सुन्दरी को देखने लगे। उस समय बसन्ततिलका नामक एक सखी अंजना से कह रही थी 'तूने अपने योग्य पवनंजयसा पति प्राप्त किया है।' यह सुनकर दूसरी सखी मिश्रका बोली, 'सखी, विद्युत्प्रभ-से वर की बात न कर तू क्या दूसरे की प्रशंसा कर रही है। वह इसी जीवन में मुक्त होगा।' बसन्ततिलका बोली, 'हे मुग्धा, तू कुछ नहीं जानती-विद्युत्प्रभ-सा कम आयु वाला व्यक्ति क्या हमारी स्वामिनी के योग्य वर होता ?' मिश्रका बोली, 'तू बड़ी मन्दबुद्धि है। अमृत अल्प होने पर भी श्रेष्ठ है, विष अधिक होने पर भी किस काम का ?' (श्लोक २३-२८) दोनों सखियों का यह वार्तालाप सुनकर पवनंजय सोचने लगे, विद्युत्प्रभ अंजना को अवश्य ही प्रिय है तभी वह द्वितीय सखी को उसकी प्रशंसा करने से रोक नहीं रही है। यह बात मन में आते ही अन्धकार में जैसे निशाचरों का उदय होता है उसी प्रकार उसके हृदय में क्रोध उत्पन्न हो गया। वह तत्क्षण तलवार निकाल कर यह कहते हुए आगे बढ़ा, 'जो विद्युत्प्रभ की प्रशसा कर रही है
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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