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________________ 157 तृतीय सर्ग वैताढ्य पर्वत के आदित्यपुर नामक नगर में एक राजा राज्य करते थे। उनकी पत्नी का नाम था केतमती। उनके पवनञ्जय नामक एक पुत्र था जो बल और आकाशगमन में पवन की ही भांति विजयी था। (श्लोक १-२) उस समय भरत क्षेत्र के समद्रतीरवर्ती दन्ती पर्वत पर महेन्द्र नामक एक नगर था। वहाँ महेन्द्र नामक एक विद्याधर राजा राज्य करते थे। उनकी पत्नी का नाम था हृदय सुन्दरी। उसने अरिदमन आदि एक सौ पुत्रों को जन्म देने के पश्चात् अञ्जना सुन्दरी नामक एक कन्या को जन्म दिया। जब वह यौवन को प्राप्त हई तो उसके पिता को उसके योग्य वर के लिए चिन्ता हई । मंत्रियों ने उसके योग्य हजार विद्याधरों के नाम बताए। महेन्द्र के आदेश पर मन्त्रीगण उन विद्याधर कुमारों के चित्र कपड़े पर अङ्कित करने लगे और उन्हें दिखाने लगे। उनमें एक मन्त्री ने एक दिन विद्याधर राजा हिरण्याभ और सुमनसा के पुत्र विद्युत्प्रभ और प्रह्लाद और केतूमती के पुत्र पवनंजय का मनोहर चित्र अङ्कित कर उन्हें दिखाया। उन दोनों चित्रों को देखकर महेन्द्र बोले, 'ये दोनों विद्याधर कुमार रूपवान और कुलीन हैं। अञ्जना के लिए इनमें किसे चुनें ?' (श्लोक ३.९) मन्त्री बोला, 'राजन्, नैमित्तिकों ने मुझे बताया था कि विद्युत की भाँति प्रभायुक्त विद्युत्प्रभ अट्ठारह वर्ष पूर्ण होने पर मोक्ष प्राप्त कर लेगा और प्रल्लादपुत्र पवनंजय दीर्घजीवी होगा। इसलिए अंजना सुन्दरी के योग्य वर पवनंजय ही है।' (श्लोक १०-११) उस समय समस्त विद्याधर राजा अपने-अपने परिवार सहित खब धमधाम से नन्दीश्वर द्वीप की यात्रा करते थे। इसी प्रकार की एक यात्रा में प्रह्लाद ने महेन्द्र को देखा और उनके पास जाकर अंजना सुन्दरी की अपने पुत्र पवनंजय के लिए याचना की। महेन्द्र ने स्वीकार कर लिया क्योंकि वे तो यही चाहते थे। प्रह्लाद की याचना तो निमित्त मात्र थी। आज से तीसरे दिन मानस सरोवर के तट पर उनका विवाह करेंगे यह तय कर वे अपने-अपने राज्य को लौट गए। महेन्द्र और प्रह्लाद अपने परिवार सहित
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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