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________________ 54] दोनों ही बलवान थे अतः एक-दूसरे के अस्त्रों को अपने अस्त्रों द्वारा काटने लगे । पूर्व और पश्चिम समुद्र की भाँति कोई किसी से न्यून नहीं था । तब रण रूपी यज्ञ में दीक्षित वे परस्पर वाध्यवाधकताकारी उत्सर्ग और अपवाद मार्ग की तरह मन्त्रास्त्रों से एक दूसरे के अस्त्रों को काटते हुए युद्ध करने लगे । एक वृक्ष पर लगे दो फलों की तरह भुवनालङ्कार और ऐरावत हाथी दोनों के एक दूसरे के निकट आते ही रावण कूद कर ऐरावत पर चढ़ गया । और इन्द्र के महावत की हत्या कर एक वृहद हस्ती की तरह इन्द्र को बांध लिया । यह देखकर राक्षस वीरों ने हर्ष से उच्च कोलाहल कर मधुमक्खियाँ जिस प्रकार मधु छत्ते को घेर लेती है उसी प्रकार ऐरावत को घेर लिया । इन्द्र को घिरते देख इन्द्र की सेना भीत होकर युद्ध से विरत हो गई। कारण स्वामी पराजय से समस्त सैन्य भी पराजित हो जाती है । ऐरावत हस्ती सहित रावण इन्द्र को लेकर अपने स्कन्धावार में लौट आया । उसने स्वयं को वैताढ्य पर्वत की उभय श्रेणियों का अधिपति घोषित कर दिया । (श्लोक ६०८-६२१) वहां से रावण लंका लौट गया । तोते को जिस प्रकार पींजरे में रखा जाता है उसी प्रकार उसने इन्द्र को कारागार में रख दिया । (श्लोक ६२२) यह खबर मिलने पर इन्द्र के पिता सहस्रार दिक्पालों को लेकर लंका गए और सेवक की तरह हाथ जोड़कर लगे : रावण से कहने ( श्लोक ६२३ ) 'कैलाश पर्वत को पत्थर के टुकड़े की तरह उठा लेने वाले आप जैसे वीर से पराजित होकर भी हम लज्जित नहीं हैं, उसी प्रकार आप जैसे वीर से प्रार्थना करने में भी हमें लज्जा नहीं है । अतः मैं आपसे प्रार्थना करता हूं, आप इन्द्र को छोड़कर मुझे पुत्रभिक्षा दें ।' ( श्लोक ६२४ - ६२५) रावण बोला- 'यदि इन्द्र स्वपरिवार और दिकपालों सहित कुछ समय रहकर निम्नलिखित कार्य करे तो मैं उसे छोड़ सकता हूं। अपने घर को जिस प्रकार धूल और कचरे से परिष्कृत रखा जाता है उसी प्रकार उसे लका को परिष्कृत रखना होगा । मेघ जैसे जलवृष्टि करते हैं उसी भांति प्रतिदिन सुबह लंका में दिव्य
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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