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प्रदर्शन नहीं करेंगे तो यूं ही बर्बाद हो जाएँगे।' (श्लोक ५९६-६००)
इन्द्र ने प्रत्युत्तर दिया, 'दीन राजाओं ने रावण की भक्ति की इसी लिए रावण इतना मदोन्मत्त हो गया है और मुझसे भी भक्ति का दावा किया है। इतने दिनों तक तो जैसे-तैसे सब सुखपूर्वक हो गया; किन्तु अब उसका सम्पर्क काल तुल्य इन्द्र से हआ है। एतदर्थ तुम जाकर अपने प्रभु से बोलो कि अब वे अपनी भक्ति या शक्ति दिखाएँ। यदि भक्ति और शक्ति नहीं दिखाएंगे तो वे ऐसे ही नष्ट हो जाएंगे।'
(श्लोक ६०१-६०३) तब दूत ने जाकर ये सब बातें रावण से निवेदित की। ऋद्ध बना रावण तुरन्त युद्ध के लिए तैयार हुआ और सैनिकों को भी प्रस्तुत होने को कहा । इन्द्र भी उसी समय युद्ध के लिए तैयार होकर सैन्य सह नगर के बाहर आया । कारण वीर अन्य वीर का अहंकार सहन नहीं कर सकते ।
(श्लोक ६०४-६०५) युद्ध प्रारम्भ हुआ। सामन्तों के साथ सामन्त, सैनिकों के साथ सैनिक, सेनापतियों के साथ सेनापति युद्ध करने लगे। प्रलयकाल में संवर्त और पुष्करावर्त मेघ में जिस प्रकार संघर्षण होता है उसी प्रकार अस्त्र वर्णन करने वाली दोनों सेनाओं में संघर्ष होने लगा।
___(श्लोक ६०६-६०७) पतङ्गों की भाँति इन सैनिकों के मरने से क्या लाभ होगा यह समझकर रावण अपने भुवनालङ्कार हाथी पर चढ़कर आया। इन्द्र
और रावण दोनों के हाथियों ने परस्पर आक्रमण किया। एक हाथी ने दूसरे हाथी की सूड को इस प्रकार जकड़ लिया कि लगा दो सर्प एक दूसरे को जकड़ कर पड़े हुए हैं या दोनों हाथियों ने जैसे नागपाश की रचना की है। दोनों हाथियों के दाँतों द्वारा परस्पर प्रहार करने के कारण अरणि काष्ठ से जैसे स्फुलिङ्ग निकलते हैं उसी प्रकार अग्नि-स्फुलिङ्ग वहाँ से निकलने लगे। दाँतों के आघात से दोनों के दाँतों से उसी प्रकार स्वर्णवलय खिसक कर गिरने लगे जैसे विरहिणी के हाथों से स्वर्णवलय खिसक के गिर जाते हैं। दाँतों के आघात से जिस प्रकार गण्डस्थल से मदधारा प्रवाहित होती है उसी प्रकार दोनों की देह से रक्तधारा प्रवाहित होने लगी। उधर रावण और इन्द्र दोनों हाथियों की तरह युद्ध करने लगे। तोमर मुद्गर और वाणों द्वारा दोनों परस्पर प्रहार करने लगे।