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________________ 46] राजा की बलि दो ।' तब सुलसा सहित सगर राजा को यज्ञाग्नि में निक्षेप किया गया । इस प्रकार अपना उद्देश्य पूरा हो जाने पर वह असुर उस स्थान का परित्याग कर अन्यत्र चला गया । इस भांति पाप के पर्वतरूप पर्वत ने हिंसात्मक यज्ञ का प्रचलन करवाया । आप इसे बन्द करें ।' ( श्लोक ४९३ - ५०१ ) रावण ने नारद की बात स्वीकार कर ली और उन्हें वन्दना कर विदा दी । मरुत राजा को भी उसके कृत्य के लिए उसने उसे क्षमा कर दिया । ( श्लोक ५०२ ) तब मरुत राजा रावण को नमस्कार कर बोला- 'हे स्वामी ! दया के सागर ये कौन थे ? जिन्होंने आपके माध्यम से हम लोगों की भयंकर पाप से रक्षा की ।' प्रत्युत्तर में रावण बोला - ( श्लोक ५०३ ) ' ब्रह्मरुचि नामक एक ब्राह्मण था । वह तापस धर्मावलम्बी था । उसी अवस्था में उसकी स्त्री कुर्मी ने गर्भ धारण किया । एक समय वहां कुछ साधु आए । उनमें से एक ने उससे कहा - 'संसार भय से भीत होकर तुम गृह परित्याग कर वन में रहते हो, यह तो ठीक है; किन्तु वनवास में भी जब स्त्री को साथ रखकर विषय भोग करते हो तब गृहवास से यह वनवास किस प्रकार अच्छा ( श्लोक ५०४ - ५०६ ) हुआ ?' यह बात ब्रह्मरुचि को लग गई । तब ब्रह्मरुचि ने तापस धर्म परित्याग कर जैन साधु का धर्म ग्रहण कर लिया । कुर्मी ने भी श्रावक धर्म ग्रहण कर मिथ्यात्व का परित्याग किया और वहीं रहने लगी । यथासमय उसने एक पुत्र को जन्म दिया । जन्म के समय नहीं रोने के कारण कुर्मी ने उसका नाम नारद रखा। एक दिन कुर्मी जब कार्यवश अन्यत्र गई थी तब जृम्भक देवों ने आकर उसे चुरा लिया। कुर्मी पुत्र-शोक से कातर होकर इन्दुमाला नामक एक आर्यिका से दीक्षित हो गई । (श्लोक ५०७ - ५०९) जृम्भक देवों ने उस बालक का पालन-पोषण किया, लिखना - पढ़ना सिखाया, शास्त्रों में प्रवीण किया और अन्त में आकाशगामिनी विद्या दो । ( श्लोक ५१० ) श्रावक व्रतों का पालन करता हुआ नारद क्रमशः युवावस्था को प्राप्त हुआ । सिर पर शिखा रखने के कारण न उसे यति कहा
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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