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बालोचना की और राज्यादेश प्राप्त कर वे उस ग्रन्थ का पाठ राज्य सभा में करने लगे।
(श्लोक ४७०) ग्रन्थ पाठ के पूर्व सगर राजा बोले-'इस ग्रन्थ के अनुसार जो राजलक्षण से हीन होगा उसे या तो सभा से निकाल दिया जाएगा या मृत्युदण्ड दिया जाएगा।'
(श्लोक ४७१) पुरोहित जैसे-जैसे पढ़ते गए, उसमें वर्णित गुण स्वयं में न पाकर मधुपिंग लज्जित होने लगा। अन्तत: वह वहां से उठकर चला गया। सुलसा ने सगर राजा को वरमाला पहनाई। शेष सभी अपने-अपने राज्य को लौट गए।
(श्लोक ४७२-४७३) मधुपिंग अपमानित होकर बाल तप करता हुआ परलोक गमन किया और साठ हजार असुरों के स्वामी महाकाल के रूप में जन्म ग्रहण किया। अवधि ज्ञान से उसे पूर्वजन्म ज्ञात हुआ। उसे स्मरण हो आया कि सुलसा के स्वयंवर में सगर राजा के कारण उसे अपमानित होना पड़ा था। उन्होंने ही कृत्रिम ग्रन्थ की रचना कर मुझे सर्वगुण हीन प्रमाणित किया था। अतः मेरे लिए यही उचित है कि मैं सगर राजा को अन्य राजाओं सहित प्राणदण्ड दूं। तब से वह उनका छिद्र खोजने लगा। तभी शुक्तिमती नदी के तट पर पर्वत से मिलना हुआ। वह ब्राह्मण वेष धारण कर पर्वत के पास गया और बोला-'हे महामति ? मैं आपके पिता का मित्र था। मेरा नाम शाण्डिल्य है। पूर्व में मैं और क्षीर कदम्ब गौतम नामक विज्ञ उपाध्याय के निकट वेद पाठ करते थे। सुना कि नारद एवं अन्य कुछ लोगों ने तुम्हारा अपमान किया। इसीलिए मैं यहां आया हूं। मैं लोगों को विमुग्ध कर तुम्हारा पक्ष प्रबल कर दूंगा।
(श्लोक ४७४-४७९) पर्वत और असुर एक साथ रहने लगे। असुर ने उन लोगों की दुर्गति करने के लिए बहत से मनुष्यों को कुधर्म में मुग्ध कर दिया। वह लोगों में व्याधि, महामारी और भूतभय फैलाने लगा
और जो पर्वत का मत ग्रहण कर लेता उसे वह उन व्याधियों से मुक्त कर देता है। शाण्डिल्य के आदेश से उनके बार बार व्याधि महामारी और भूतभय निवारण कर देने से लोग उसका मत ग्रहण करने लगे।
(श्लोक ४८०-४८२) सगर राजा के राज्य में, अन्तःपुर में और परिवार में भी उस