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लिए स्वयंवर रचकर समस्त राजाओं को आमन्त्रित किया। राजागण स्वयंवर में उपस्थित हुए। उनमें सगर नामक राजा विशेष पराक्रमी था। उसकी आज्ञा से मन्दोदरी नामक एक दूती प्रतिदिन अयोधन राजा के प्रासाद में जाने लगी। एक दिन जब दिति कन्या सुलसा सहित अन्तःपुर के उद्यान स्थित कदली गृह में बैठी थी, मन्दोदरी वहाँ पहुंची। माँ और पुत्री में क्या बात हो रही है, जानने के लिए वह कदली गृह के भीतर न जाकर आड़ में छुपकर सुनने लगी।
(श्लोक ४५५-४६०) ___ 'दिति बोली, 'वत्स, इस समय तेरा स्वयंवर हो रहा है; किन्तु मुझे दुःख हो रहा है और उसका निवारण तू ही कर सकती है। अत: प्रारम्भ से बोल रही हूं, मन लगाकर सुन- (श्लोक ४६१)
__ 'श्री ऋषभदेव के भरत और बाहबली नामक दो पुत्र थे। उनके भी सोम और सूर्य नामक दो पुत्र हुए। ये दोनों मुख्य वंशधर थे और उनके नाम से ही वंश परम्परा प्रवर्तित हुई । सोम के वंश में मेर। भाई तृणबिन्दु हआ। तेरे पिता अयोधन सूर्यवंश में हए। तेरे पिता की बहिन सत्ययशा का विवाह तृणबिन्दु के साथ हुआ। उसके गर्भ से मधुपिंग नामक एक पुत्र हुआ। मैं तेरा विवाह मधुपिंग के साथ करना चाहती हैं। तेरे पिता तेरा विवाह स्वयंवर में आए उसी राजा के साथ ही करेंगे जिसे तू पसन्द करेगी। तू स्वयंवर में किसे पसन्द करेगी यह मैं नहीं जानती। इसलिए मेरा मन बहुत दुःखी है। इस दुःख को दूर करने के लिए तू मुझे वचन दे कि तू मधुपिंग को ही वरण करेगी।'
(श्लोक ४६२-४६६) __सुलसा ने मां की बात स्वीकार कर ली। मन्दोदरी ने सारी बात जाकर राजा सगर को सुना दी।
(श्लोक ४६७) सगर राजा ने स्वपुरोहित विश्वभूति को बुलाकर सारी बात बताई । विश्वभूति जो कि आशुकवि थे तत्क्षण 'राजलक्षण संहिता' नामक एक ग्रन्थ की रचना की। उसमें उन्होंने ऐसा ही लिखा जिससे सगर राजा राजलक्षण-युक्त और मधुपिंग राजलक्षण-हीन सिद्ध होगा। उसी ग्रन्थ को पुराणादि की तरह प्राचीनत्व और प्रतिष्ठा देने के लिए एक सन्दूक में बन्द कर रख दिया।
(श्लोक ४६८-४६९) अवसर देखकर पुरोहित ने राजसभा में उस ग्रन्थ की