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शोभित हो रहा था जैसे आकाश में चन्द्रमा। (श्लोक ४४१-४४२)
'मैंने और पर्वत ने 'अज' शब्द का अर्थ अपने-अपने पक्ष के अनुसार विवृत किया। फिर मैं बोला, 'हे सत्यवादी, इसमें कौन-सा सत्य है आप बताएँ।
(श्लोक ४४३) ___'उसी समय अन्यान्य वृद्ध विप्र राजा से बोले, 'राजन्, इस विवाद की मीमांसा तो आप पर निर्भर है कारण पृथ्वी और भाकाश के मध्य आप ही साक्षी हैं। घट आदि जो दस दिव्य हैं वे सत्य के आधार हैं। सत्य से ही मेघ वृष्टि करते हैं, सत्य में ही देवों की शक्ति निहित है। हे राजन, आपके द्वारा ही यह लोक सत्य पर अवस्थित है। अतः इस विषय में हम आपको अधिक क्या कहें ? जो बात आपके सत्यव्रत के अनुकूल हो वही कहें।'
(श्लोक ४४४-४४६) 'यह सुनकर अपनी सत्यवादिता की जो प्रसिद्धि थी उसकी उपेक्षा कर राजा वसु बोले, 'गुरुदेव ने 'अज' शब्द का अर्थ 'बकरा' कहा था।'
(श्लोक ४४७) _ 'वसु राजा के इस असत्य कथन को सुनकर वहाँ उपस्थित देवों ने ऋद्ध होकर वसू का स्फटिक शिला निर्मित आसन वेदी को तोड़ डाला। उसी मुहूर्त में मानो वे नरक गमन कर रहे हों इस प्रकार जमीन पर गिर पड़े। देवों द्वारा विनष्ट वसु मृत्यु प्राप्त कर नरक गए।
(श्लोक ४४८-४५०) _ 'वसु के आठ पुत्र पृथावसु, चित्रवसु, वासव, शक्र, विभावसु, विश्वावसु, सुर व महासुर क्रमशः राज सिंहासन पर बैठे; किन्तु कुपित देवों ने उन सभी की हत्या कर डाली। अतः वसु का नवम पुन सुवसु वहाँ से भागकर नागपुर और दसवाँ पुत्र वृहद्ध्वज मथुरा चला गया। नगरवासियों ने पर्वत को लज्जित एवं तिरस्कृत कर नगर से बाहर निकाल दिया। महाकाल नामक राक्षस ने उसे वन में आश्रय दिया।'
(श्लोक ४५१-४५४) रावण ने पूछा, महाकाल राक्षस कौन था ?' प्रत्युत्तर में नारद कहने लगे
_ 'चारण युगल नामक एक नगर था। वहाँ अयोधन नामक एक राजा थे। उनकी रानी का नाम था दिति । उसके गर्भ से सुलसा नामक एक रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। अयोधन ने उसके