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गलत अर्थ क्यों कर रहे हो ? गुरुदेव ने हमें अज बताया था तीन बरस पुराना धान जो बोने पर होता । गुरुदेव ने जो अर्थ बताया था तुम उसे क्यों
शब्द का अर्थ अंकुरित नहीं भूल गए ।'
( श्लोक ४१८-४२० )
पर्वत बोला- 'मेरे पिताजी ने अज शब्द का यह अर्थ कभी नहीं बताया। उन्होंने तो अज शब्द का अर्थ बकरा ही बताया था र निघण्टु कोष में भी अज का अर्थ बकरा ही है ।' (श्लोक ४२१)
मैंने कहा - ' शब्द अर्थ के मुख्य और गौण दो प्रकार के होते हैं। यहां गुरुदेव ने गौण अर्थ ही बतलाया था । गुरुदेव सदैव धर्म का ही उपदेश देते थे और जो वाक्य धर्मात्मक होते हैं उन्हें ही वेद कहा जाता है । इसलिए हे बन्धु, तुम दोनों को अन्यथा कर क्यों पाप उपार्जन कर रहे हो ?' (श्लोक ४२२-४२३) तब पर्वत आक्षेप करता हुआ बोला- 'अरे ओ नारद, गुरुदेव अज का अर्थ बकरा ही बताया था। गुरुदेव के उपदेश और शब्द के अर्थ का उल्लंघन कर तुम कौन-सा धर्म उपार्जन कर रहे हो ? लोग दण्ड के भय से मिथ्या अभिमानयुक्त वाक्य नहीं बोलते; किन्तु तुम बोल रहे हो। इसलिए हमारे अपने - अपने पक्ष के समर्थन में यह शर्त रखना उचित है कि जो मिथ्यावादी प्रमाणित होगा उसकी जिह्वा काटकर फेंक दी जाएगी। इस निर्णय के लिए हमारे साथ पढ़ने वाले वसु को नियुक्त करना ही उचित होगा ।' मैंने उसकी बात मान ली। कारण, जो सत्यवादी होते हैं उनके हृदय में कभी क्षोभ नहीं होता । ( श्लोक ४२४-४२६) पर्वत की माँ ने गृहकार्य में व्यस्त होते हुए भी हमारी इस शर्त की बात सुन ली थी । उसने अपने पुत्र को एकान्त में बुलाकर कहा - 'पुत्र तुम्हारे पिता ने 'अज' शब्द का अर्थ तीन वर्ष का पुराना धान ही कहा था । इसलिए गर्वित होकर तुमने जो जिह्वाछेद की शर्त रखी वह ठीक नहीं है । जो बिना विचारे बोलते हैं उन्हें कष्ट ही उठाना पड़ता है ।' ( श्लोक ४२७ - ४२८ )
पर्वत बोला- 'माँ, अब मैं प्रतिज्ञाबद्ध हूं
।
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अतः अब यह नहीं
सकता । '
पुत्र की भावी आशंका से पर्वत की माँ गई । कारण, पुत्र के लिए मनुष्य क्या नहीं करता ?
वसु
( श्लोक ४२९ ) राजा के निकट
( श्लोक ४३० )