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वह सुरासुर या विद्याधर या कोई प्रमुख मिथ्या दृष्टि वाला है ?'
(श्लोक २९८-३१४) तब एक विद्याधर रावण के निकट आया और बोला-'देव, यहाँ से कुछ दूरी पर माहिष्मती नामक एक नगरी है । वहाँ सूर्य-से तेजस्वी एक हजार राजाओं द्वारा सेवित सहस्रांशु नामक एक महापराक्रमी राजा राज्य करते हैं। उन्होंने जल-क्रीड़ा का आनन्द लेने के लिए रेवा के जल को हाथ से रोक लिया था। शक्तिशाली के लिए असाध्य क्या है ? हस्ती जैसे हस्तिनी यूथ लेकर जल-क्रीड़ा करता है, उसी प्रकार वे अपनी एक हजार रानियों के साथ जलक्रीड़ा कर रहे थे। उनके एक लाख अङ्ग-रक्षक अस्त्र और कवच धारण कर नदी के दोनों तटों की रक्षा कर रहे हैं। अपरिमित पराक्रमी उन राजा का शौर्य ऐसा अपूर्व और अदृष्ट पूर्व है कि उन्हें किसी रक्षक की आवश्यकता नहीं होती। वे सैनिक तो केवल शोभावृद्धि के लिए या दर्शक रूप में अवस्थित हैं।'
(श्लोक ३१५-३२०) 'जल-क्रीड़ा के समय जब वे पराक्रमी राजा बाहु सञ्चालन कर रहे थे, उसके आघात से जल देवता क्रुद्ध हो उठे थे और जलजन्तु गण भय से भाग छुटे थे। हजार रानियों के साथ जलक्रीड़ा करते उन्होंने अब जल को छोड़ दिया है। इसी लिए उस अवरुद्ध जल ने धरती और आकाश को प्लावित कर बाढ़ की तरह आकर आपके पूजा-द्रव्य को प्लावित कर दिया है । वह देखिए, राजा की पत्नियों के माल्यादि रेवा के जल में प्रवाहित हो रहे हैं। यह मेरे कथन की सत्यता का प्रथम निदर्शन है। रानियों के अङ्गराग मिल जाने से जल कर्दम युक्त हो गया है । हे वीराग्रगण्य, देखिए, देखिए।'
___ (श्लोक ३२१-३२५) __अग्नि में घृतादि पड़ने से अग्नि जैसे दुगुनी प्रज्वलित हो उठती है उसी प्रकार विद्याधर का कथन सुनकर रावण की क्रोधाग्नि दुगुनी प्रज्वलित हो गई। वह बोल उठा-'सैनिकगण ! मरणाकांक्षी उस राजा ने काजल से जैसे देवदूष्य वस्त्र दूषित हो जाता है उसी प्रकार स्व अङ्गों से रेवा जल को दूषित कर मेरी देवपूजा को दूषित कर दिया। अतः तुम लोग जाओ और धीवर जैसे मछली पकड़ लाता है उसी प्रकार उस वीर और दम्भी राजा को पकड़कर मेरे