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________________ 30] के मुकुट रूप महाराज भरत द्वारा निर्मित चैत्य के पास गया । खड्ग और अस्त्र-शस्त्रादि चैत्य के बाहर रखकर रावण ने चैत्य में प्रवेश किया और ऋषभादि तीर्थंकरों की अष्टप्रकारी पूजा की । तदुपरान्त महा साहसी रावण भक्ति वश अपनी शिरा और उपशिराओं को बाहर निकालकर बाहु रूपी वीणा पर उन्हें तन्त्री कर बजाने लगा । रावण जब ग्राम राग में रम्य वीणा बजा रहा था तब उसकी पत्नियां सप्तम स्वर से मनोहर गीत गाने लगीं । उसी समय पन्नग्पति धरणेन्द्र चैत्य वन्दना के लिए वहां आए । उन्होंने प्रभु की पूजा कर वन्दना की । तदुपरान्त रावण को ध्रुपदादि पद में मनोहर वीणा के साथ अर्हत् का गुणगान करते देखकर वे रावण से बोले - 'रावण, तुम अर्हतों का अतीव सुन्दर गुणगान कर रहे हो । यह तुम अपनी आन्तरिक भक्ति वश कर रहे हो। इससे मैं सन्तुष्ट हुआ हूं । यद्य अर्हत् भक्ति का मुख्य फल है भक्ति फिर भी तुम्हारी सांसारिक वासना अभी जीर्ण नहीं हुई है । अत: अपनी इच्छानुसार कुछ मांगो - जो मांगोगे मैं दूँगा ।' (श्लोक २६५-२७२) रावण बोला- 'हे नागेन्द्र, देवाधिदेव अर्हत् के गुणानुवाद गुण से जो आप प्रसन्न हुए हैं यह आपके हृदय में रही अर्हत् भक्ति का चिह्न है; किन्तु मुझे तो किसी भी वरदान की आवश्यकता नहीं है । कारण, वरदान से जिस प्रकार आपकी स्वामी भक्ति उत्कृष्ट होती है उसी भांति वर मांगने से मेरी स्वामीभक्ति हीन होगी ।' (श्लोक २७३-२७४) तब धरणेन्द्र बोले - 'हे रावण, तुम्हारी इस निःस्पृहता ने तो मुझे और प्रसन्न कर दिया है ।' ऐसा कहकर वे रावण को अमोघ विजया शक्ति और रूपविकारी अर्थात् रूप परिवर्तन की विद्या देकर स्वस्थान को लौट गए । (श्लोक २७५-२७६) रावण भी अष्टापद पर्वत पर स्थित समस्त जिन बिम्बों की वन्दना कर नित्यालोक नगर को गया और वहां रत्नावली से विवाह कर पुन: लंका लौट गया । ( श्लोक २७७ ) उसी समय मुनि बाली को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । सुरासुर सभी ने आकर उनका केवलज्ञान महोत्सव मनाया। अनुक्रम से बाली ने भवोपप्राही कर्मों को क्षय कर अनन्त चतुष्ट्य प्राप्त कर मोक्ष गमन किया । ( श्लोक २७८ - २७९)
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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