________________
[23
स्वजन रावण की स्तुति करने लगे । इन्द्र जैसे अमरावती पर राज्य करता है वैसे ही रावण भी लंका का राज्य करने लगा ।
( श्लोक १९६३ - १६५) कपिराज आदित्यरजा की पत्नी इन्दुमालिनी के गर्भ से एक महा बलवान् पुत्र ने जन्म ग्रहण किया । उसका नाम बाली रखा गया। उग्र भुजबलधारी बाली समुद्र पर्यन्त जम्बूद्वीप की प्रदक्षिणा देता और समस्त अर्हत् चैत्यों की वन्दना करता । आदित्यरजा के और दो सन्तानें हुईं । एक पुत्र सुग्रीव एवं एक पुत्त्री सुप्रभा । सुप्रभा सबसे छोटी थी । ( श्लोक १६६-१६८ ) ऋक्षराज की पत्नी हरिकान्ता के गर्भ से जगत् प्रसिद्ध दो पुत्र हुए नल और नील । ( श्लोक १६९ )
आदित्यरजा ने अपने बलवान् पुत्र बाली को राज्य देकर स्वयं दीक्षा ग्रहण कर ली और तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया । बाली ने अपने समान सम्यक्हृष्टि सम्पन्न, न्याय-परायण, दयालु और महापराक्रमी अनुज सुग्रीव को युवराज पद पर अभिषिक्त किया । ( श्लोक १००-१७१) एक बार रावण अन्तःपुरिकाओं को लेकर हाथी पर चढ़कर मेरु पर्वत के अर्हत् चैत्यों की वन्दना करने लगा । उसी समय मेघप्रभ नामक खेचर का पुत्र खर लंका में आया । उसने वहां चन्द्रनखा को देखा और उस पर अनुरक्त हो गया | चन्द्रनखा भी उसकी अनुरागिनी हुई । तब खर चन्द्रप्रभा को हरण कर पाताल लंका में चला गया और आदित्यरजा के पुत्र चन्द्रोदय को परास्त कर उसका राज्य छीन लिया । मेरु पर्वत से लौटकर रावण ने जब चन्द्रनखा के अपहरण की बात सुनी तो अत्यन्त क्रोधित हो उठा। हाथी के शिकार के समय केशरी सिंह जैसे भयानक रूप धारण करता है उसी प्रकार विकटमूर्ति रावण खर के विनाश हेतु युद्ध के लिए उद्यत हुआ । तब मन्दोदरी ने रावण से कहा - 'हे मानद, अकारण आप युद्धोन्मत्त क्यों हो गए हैं ? शान्त चित्त से एक बार सोचिए । कन्या तो किसी न किसी को देनी ही होती है । फिर यदि कन्या ने स्वेच्छा से कुलीन वर चुन लिया है तो इसमें बुरा क्या है ? दूषण का अग्रज खर चन्द्रनखा के उपयुक्त वर है । वह आपका पराक्रमी और निर्दोष सेवक होगा । अतः उस पर प्रसन्न हों और