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________________ 24] प्रधान पुरुष को भेजकर चन्द्रनखा के साथ उसका विवाह करवा दें। पाताल लंका का राज्य भी उसको दे दें। (श्लोक १७२-१८०) रावण के अनुज कुम्भकर्ण और विभीषण ने भी रावण को यही परामर्श दिया। तब रावण ने शान्त होकर उनकी बात मान ली एवं मय व मरीचि को भेजकर उसका विवाह करवाया और पाताल लंका का राज्य भी छोड़ दिया। खर रावण की आज्ञा का पालन करते हुए चन्द्रनखा के साथ आनन्दपूर्वक दिन व्यतीत करने लगा। (श्लोक १८१-१८२) राज्यभ्रष्ट चन्द्रोदय कालवश मृत्यु को प्राप्त हुआ। उस समय उसकी पत्नी अनुराधा गभिणी थी। वह जंगल में भाग गई। और वहां सिंही जैसे सिंह को जन्म देती है उसी प्रकार एक (पुरुष सिंह) पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम रखा गया विराध । वह जैसा नीतिवान् था वैसा ही बलवान् भी था। युवावस्था प्राप्त होते न होते उसने समस्त कलाओं के सागर को अतिक्रम कर लिया अर्थात् समस्त कलाओं में पारंगत हो गया। (श्लोक १८३-१८५) एक दिन रावण राज्यसभा में बैठा था। बातचीत के प्रसङ्ग वश कोई कह उठा-'कपीश्वर बाली बहत प्रतापी एवं बलवान् पुरुष हैं। सूर्य जैसे अन्य का प्रकाश नहीं सह सकता उसी प्रकार रावण भी अन्य का प्रताप सहन नहीं कर सकता था । अतः उसने बाली के पास दूत भेजा। दूत वहां जाकर बाली को नमस्कार कर बोला (श्लोक १८६-१८८) _ 'मैं रावण का दूत हूं। उन्होंने आपको कहलवाया है, 'तुम्हारे पूर्वज श्रीकण्ठ ने शत्रओं के हाथ से बचने के लिए हमारे पूर्वज कीर्तिधवल की शरण ग्रहण की थी। उन्होंने अपनी पत्नी का भाई समझ कर उनकी रक्षा की थी। तदुपरान्त उनमें स्नेह हो गया और श्रीकण्ठ का विच्छेद असह्य होगा समझ कर अपना वानर द्वीप उन्हें देकर यहां आकर रहने को कहा। तभी से हम लोगों का स्वामी और सेवक का सम्बन्ध है। उसके बाद हमारे तुम्हारे वंश में कितने ही राजा हो गए हैं। वे सभी इस सम्बन्ध का निर्वाह करते आ रहे हैं। श्रीकण्ठ से सातवीं पीढ़ी में तुम्हारे पितामह किष्किन्धी हए। उस समय मेरे प्रपितामह सूकेश लंका में राज्य कर रहे थे। उनसे भी स्वामी-सेवक का सम्बन्ध था। तदुपरान्त आठवीं पीढ़ी
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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