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________________ [21 रावण ऐसा लग रहा था मानो ऐरावत पर इन्द्र बैठा हो । रावण ने उसका नाम रखा भुवनालंकार । उस हाथी को आलान स्तम्भ से बाँधकर उस रात वह वहीं रहा । दूसरे दिन सबह जब वह सभासदों सहित सभा में बैठा था उसी समय द्वाररक्षक द्वारा सूचना देकर पवनवेग नामक एक विद्याधर ने उस सभा में प्रवेश किया। उसका समस्त शरीर अस्त्राघात से क्षत-विक्षत था। वह रावण को प्रमाण कर बोला (श्लोक १२८-१३७) ____ 'हे देव, किष्किधी राजा का पुत्र सूर्य राजा और ऋक्षराज पाताल लंका से किष्किधा गए थे। वहाँ यम की भाँति भयंकर प्राणों को संशय में डालने वाला यमराज के साथ उनका तुमुल युद्ध हुआ। बहुत देर तक युद्ध करने के पश्चात् यम ने दोनों भाइयों को बाँधकर चोर की तरह कारागार में डाल दिया और उस कारागार को उसने वैतरणी पार के नरकावास में परिणत कर दिया है । वह वहाँ छेदन-भेदन कर दोनों भाइयों को अनुचरों सहित नाना प्रकार की नारकीय यन्त्रणा दे रहा है । हे राजन्, वे आपके बहत दिनों से सेवक हैं । उनका पराभव आपका पराभव है । अतः आप उन्हें मुक्त करें। आपकी आज्ञा अलंध्य है।' (श्लोक १३८-१४२) रावण बोला, 'तुम जो कुछ कह रहे हो वह ठीक है । आश्रयदाताओं की दुर्बलता के कारण ही आश्रित, का पराभव होता है । मेरे नहीं रहने पर दुर्बुद्धि यम ने मेरे सेवकों को नीचतापूर्वक जो कारागार में डाल दिया है उसका प्रतिफल मैं उसे शीघ्र दूंगा।' श्लोक (१४३-१४४) यह कहकर उग्र भुजबलों को धारण करने वाला रावण युद्ध करने की इच्छा से सेना लेकर दिक्पाल यम द्वारा रक्षित किष्किधा नगरी गया । वहाँ उसने त्रपुपान, शिला-स्फालन, पशुच्छेद आदि महा दुःखदायी सात नरक देखे । उन्हीं नरकों में स्वयं के सेवकों को दुःख पाते देखकर उसने आरक्षक परमार्मियों को गरुड़ जैसे सर्प को त्रासित कर देता है उसी प्रकार त्रासित किया और नरकावास भग्न कर सेवकों सहित अन्य बन्दियों को भी मुक्त कर दिया। महापुरुषों का आगमन किसका कष्ट दूर नहीं करता? । (श्लोक १४५-१४८) नरक के रक्षकों ने त्रासित होकर दोनों हाथ ऊँचे किए रोते
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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