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________________ 270] दक्षिण कुम्भ पर रखे हुए मणिरत्न के आलोक में वे सेतु द्वारा उन्मग्ना और निमग्ना नदी को पार कर तमिस्रा गुहा के आभ्यन्तर भाग को कांकिनी रत्न कृत मण्डल से आलोकित किया। (१७-१८) उत्तर दिशा का द्वार तो उनके आते ही अपने आप खुल गया। उन्होंने उसी द्वार से निकलकर आपात नामक म्लेच्छों को जीत लिया। सिन्धु नदी के पश्चिम दिशा का भूभाग उनके सेनापति ने जीत लिया और हिमवंत के अधिपति को उन्होंने स्वयं जीत लिया। कांकिणी रत्न की सहायता से ऋषभकूट पर अपना नाम खोदकर और गङ्गा को पीछे रखकर गङ्गा की पूर्व दिशा में स्थित प्रदेश को सेनापति द्वारा जीत लिया। वैताढय पर्वत की उभय श्रेणियों के विद्याधरों से उपहार प्राप्त कर उन्होंने नाटयमाल देव पर विजय प्राप्त कर ली। खण्डप्रपाता गुफा के द्वार को सेनापति द्वारा उन्मुक्त कर दिए जाने पर उन्होंने उस गुफा में प्रवेश किया और पहले की तरह ही चक्र का अनुसरण करते हुए उससे बाहर निकले । गङ्गा के पूर्व भाग को सेनापति द्वारा जीत कर गङ्गा के किनारे उन्होंने छावनी डाल दी। (श्लोक १९-२४) गङ्गा के मुहाने पर स्थित मगध तीर्थ में निवास करने वाली नवनिधि ने उनके पुण्य प्रभाव से उनकी अधीनता स्वीकार कर ली। इस भांति छह खण्ड भरत को जीतकर इन्द्रतुल्य चक्रवर्ती की गरिमा और यश प्राप्त कर वे काम्पिल्य नगर को लौट आए। देव और राजाओं ने उन्हें चक्री रूप में अभिषिक्त किया। नगर में बारह वर्ष तक उत्सव होता रहा । दीर्घबाहु उनका आदेश भरत क्षेत्र के राजाओं द्वारा माना जाने लगा। उन्होंने धर्मानुकल दीर्घकाल तक सांसारिक सुखों का भोग किया। (श्लोक २५-२८) एक दिन संसार से विरक्त होकर उन्होंने सहज भाव से राज्य परित्याग कर मोक्षगमन के लिए उत्सुक बने हुए मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली। हरिषेण चक्रवर्ती ने ३२५ वर्ष युवराज रूप में, ३२५ वर्ष राजा रूप में, १५० वर्ष दिग्विजयी रूप में, ८८५० चक्री रूप में, ३५० वर्ष व्रती रूप में व्यतीत किए। दृढ़तापूर्वक व्रतों को पालन कर जब उनकी दस हजार वर्ष की आयु बीत गई तब घाती कर्मों के क्षय हो जाने से केवलज्ञान प्राप्त कर अक्षय आनन्द रूप मोक्ष में चले गए। (श्लोक २९-३२) द्वादस सर्ग समाप्त
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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