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________________ (261 तब वे बोले, 'हे कृपानिधि, आपने हम लोगों को उपदेश देकर बहुत अच्छा कार्य किया है । आपके शुभ उपदेश से हम लोग अपना आज तक का दुःख भूल गए हैं; किन्तु पूर्व उपार्जित क्रूर कर्मों ने हमें सुदीर्घ काल तक के लिए नरकवास दिया है । इनके विषय दुःख को अब कौन दूर करेगा ? ' ( श्लोक २५४ - २५५) उनकी यह बात सुनकर सीतेन्द्र करुणा परवश होकर बोले, 'कहो तो मैं तुम तीनों को नरक से निकालकर देवलोक में ले जाऊँ ।' ( श्लोक २५६ ) ऐसा कहकर उन्होंने तीनों को उठाया; किन्तु उनकी देह पारे की भाँति कण-कण होकर उनके हाथों में से गिर गई और पुनः मिल गई । सोतेन्द्र ने उन्हें पुनः उठाया; किन्तु उनका शरीर पुनः पूर्व की भांति बिखर कर मिल गया । तब वे सीतेन्द्र को बोले, 'हे भद्रिक, आप जब हमको यहाँ से उठाते हैं तो और अधि कष्ट होता है । अतः हमें यहीं रहने दें और आप देवलोक लौट जाएँ ।' ( श्लोक २५७-२५९ ) तब सीतेन्द्र उन्हें छोड़कर राम के निकट गए। राम को नमस्कार कर वे फिर शाश्वत अर्हतों के तीर्थयात्रा करने के लिए नन्दीश्वर द्वीप गए । वहाँ से लौटते समय देवकुरु क्षेत्र में भामण्डल राजा के जीव को युगल रूप में देखा । पूर्व स्नेह के कारण सीतेन्द्र उन्हें भी सदुपदेश देकर स्वकल्प में लौट गए । ( श्लोक २६०-२६१) भगवान राम ने केवलज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् २५ वर्षों तक पृथ्वी पर विचरण कर जीवों को बोध देते हुए अपना १५००० वर्षों का आयुष्य पूर्णर कर शैलेशीकरण द्वारा शाश्वत सुख और आनन्दमय स्थान मोक्ष प्राप्त किया । (श्लोक २६१-२६२) दवम सर्म समाप्त जैन रामायण समाप्त एकादश सर्ग जिनके चरण कमल इन्द्रादि द्वारा पूजित होते हैं, कर्म रूप वृक्षों के लिए जो गजेन्द्र तुल्य हैं और जो धरती के लिए कल्प वृक्ष रूप हैं ऐसे भगवान जिनेन्द्र नमि को नमस्कार । इस लोक और
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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