________________
260]
रावण का जीव इन्द्रायुध तीन शुभजन्मों के पश्चात् तीर्थंकर गोत्र कर्म का बन्धन कर तीर्थंकर होगा। तुम उस समय वैजयन्त विमान से च्युत होकर उसके गणधर बनोगे। अन्ततः तुम दोनों मोक्ष जाओगे। लक्ष्मण का जीव जो कि मेघरथ नामक तुम्हारा पुत्र होगा, शुभगति प्राप्त कर पुष्करवर द्वीप के पूर्व विदेह की अलङ्कार स्वरूप रत्नचित्रा नगरी में चक्रवर्ती बनेगा। चक्रवर्ती का वैभव भोग करने के पश्चात् दीक्षा लेकर अनुक्रम से तीर्थंकर होकर मोक्ष जाएगा।'
(श्लोक २३०-२४४) यह वृत्तान्त सुनकर सीतेन्द्र पूर्व स्नेह के कारण उस नरक में गए जहाँ लक्ष्मण दुःख भोग रहे थे। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि शम्बूक और रावण सिंहादि का रूप धारण कर कुपित बने लक्ष्मण के साथ युद्ध कर रहे थे। तदुपरान्त परमाधार्मिक देव यह कहते हुए कि 'इस प्रकार क्रोधपूर्वक युद्ध करने वाले तुम लोगों को कोई दुःख नहीं होगा।' -उन्हें उठाकर अग्नि-कुण्ड में डाल दिया। वहाँ उन तीनों की देह जलने लगो। उनका समस्त शरीर जल गया। वे उच्च स्वर में पुकारने लगे तो उन परमाधार्मिक देवों ने उन्हें बलपूर्वक आकर्षण कर उत्तप्त तेलकुम्भी में डाल दिया। वहाँ उनका शरीर तैलाक्त होने पर उनको उठाकर ज्वलन्त चूल्हों पर चढ़े तवे पर डाल दिया। वहाँ उनका शरीर तड़-तड़ कर विदीर्ण होने लगा। उससे उन्हें भयानक यातना होने लगी।
(श्लोक २४५-२४९) उन्हें इस प्रकार दुःख पाते देखकर सीतेन्द्र परमाधार्मिक देवों से बोले, 'ओ दुष्टो, क्या तुम नहीं जानते ये तीनों उत्तम पुरुष हैं। हे असुरो, तुम लोग दूर हो जाओ, इन महात्माओं को छोड़ दो।' परमाधार्मिकों के दूर चले जाने पर सीतेन्द्र शम्बूक और रावण से बोले तुम लोगों ने पूर्व जन्म में भयानक दुष्कृत्य किए थे। उसी के फलस्वरूप इस नरक में आना पड़ा। अपने दुष्कृत्य के परिणामों को देखकर भी तुम लोग अब भी अपने पूर्व वैर का परित्याग नहीं कर रहे हो ?' इस प्रकार उन्हें समझाकर पूर्व वैरजन्य युद्ध से निवृत्त कर सीतेन्द्र ने लक्ष्मण और रावण को बोध देने के लिए उनका आगामी भव केवली भगवान ने जैसा बताया था सुनामा।
(श्लोक २५०-२५३)