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कर पुनः पटरानी बनो। आपके आदेश से हम भी राम की रानियाँ बनेंगी । अतः हे राम, इन सब विद्याधर कुमारियों के साथ विवाह करो । मैं भी आपके साथ पूर्व की भांति विहार करूंगी। मैंने आपका जो अपमान किया था उसके लिए मुझे भी क्षमा कर दीजिए ।' ( श्लोक २२० - २२४ )
तत्पश्चात् सीता की माया द्वारा निर्मित वे विद्याधर कुमारियाँ कामदेव को जीवन्त कर देने वाली औषधि-सा गीत गाने लगी। मायावी सीता के वचनों से विद्याधरियों के संगीत से और वसन्त ऋतु से भी राम जरा भी विचलित नहीं हुए । अतः माघ शुक्ला द्वादशी के दिन रात्रि के शेष भाग के समय मुनि राम को केवलज्ञान उत्पन्न हो गया । सीतेन्द्र और अन्यान्य देवों ने भक्तिपूर्वक राम का केवलज्ञान महोत्सव मनाया । तदुपरान्त दिव्य स्वर्ण कमल पर बैठकर दिव्य छत्र से सुशोभित राम ने देशना दी । ( श्लोक २२५-२२९)
देशना शेष होने पर सीतेन्द्र ने अपने अपराधों की क्षमा याचना कर लक्ष्मण और रावण की क्या गति हुई है पूछा । राम बोले, 'इस समय शम्बूक सहित रावण और लक्ष्मण चतुर्थ नरक में हैं । कारण प्राणी की गति कर्माधीन है । नरकायु पूर्ण कर लक्ष्मण और रावण पूर्व विदेह की अलङ्कार स्वरूपा विजयवती नामक नगरी में सुनन्द के घर रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न होंगे । उनके नाम जिनदास और सुदर्शन होंगे। वहाँ निरन्तर जिनधर्म का पालन कर वे दोनों मृत्यु के पश्चात् सौधर्म देवलोक में देव बनेंगे । वहाँ से च्युत होकर पुनः वे विजयवती नगरी में ही श्रावक बनेंगे | वहाँ से मृत्यु के पश्चात् हरिवर्ष क्षेत्र में दोनों ही पुरुष देह धारण करेंगे। वहाँ से च्युत होकर पुनः विजयवती में ही कुमारगति राजा और रानी लक्ष्मी के गर्भ से जन्म लेकर जयकान्त और जयप्रभ नामक उनके पुत्र होंगे । वहाँ जिन धर्मानुसार संयम का पालन कर लान्तक नामक छठे देवलोक में देव बनेंगे। तुम अच्युत देवलोक से च्युत होकर इसी भरत क्षेत्र में सर्वरत्न मति नामक चक्रवर्ती होंगे । वे दोनों लान्तक देवलोक से च्युत होकर इन्द्रायुध और मेघरथ नामक तुम्हारे पुत्र होंगे । वहाँ दीक्षा लेकर तुम मृत्यु के वैजयन्त नामक द्वितीय अनुत्तर विमान में उत्पन्न होंगे ।
पश्चात्