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________________ 258]] प्रतिनन्दी उन्हें देखते ही उठकर खड़े हो गए। उन्होंने अवशेष अन्न राम को दिया। मुनि राम ने पारणा किया। आकाश से पुष्पवृष्टि श्लोक २०३-२०७) तदुपरान्त राम ने देशना दी। उस देशना को सुनकर प्रतिनन्दी आदि राजाओं ने सम्यक्त्व सहित श्रावक के बारह व्रत धारण कर लिए। वनवासी देवों द्वारा पूजित होते हुए राम दीर्घकाल तक वहीं अवस्थित रहे। भवसागर को पार करने के लिए वे एक मास, दो मास, तीन मास व चार मास के पश्चात् पारणा करने लगे। कभी पर्यङ्कासन में, कभी खड़े होकर हाथ प्रलम्बित कर नासाग्र दृष्टि किए, कभी अंगुष्ठ पर तो कभी घुटनों पर भार डालकर खड़े होकर नाना प्रकार के आसनों द्वारा राम ध्यान करने लगे। इसी भाँति वे कठोर तप करते रहे। (श्लोक २०८-२१२) एक बार मुनि राम विहार करते हुए कोटिशिला पर जा पहुंचे। यह वही शिला थी जिसे लक्ष्मण ने विद्याधरों के सम्मुख उठाई थी। राम उसी शिला पर प्रतिमा धारण कर क्षपक श्रेणी का आश्रय लिए शुक्ल ध्यानान्तर को प्राप्त हए । राम की उस स्थिति को सीतेन्द्र नामक इन्द्र बने हए सीता के जीव ने अवधिज्ञान से देखकर सोचा- राम यदि पुनर्भवी हो तो मैं उनके साथ जाकर रहूं अतः मैं उन्हें अनुकूल उपसर्ग द्वारा क्षपक श्रेणी से च्युत कर दूं। क्षपक श्रेणी से च्युत होने पर राम मत्यु के पश्चात् मेरे मित्र बन जाएंगे। यह सोचकर सीतेन्द्र राम के पास गए। वहाँ जाकर वसन्त विभूषित एक वृहद् उद्यान का निर्माण किया। वहाँ कोयल कुहू कुहू करने लगी। फूलों की सुगन्ध से मुग्ध बने भ्रमर गुजन करने लगे और आम चम्पक कंकिल गुलाब और बोरसली के वृक्षों ने कामदेव के नवीन अस्त्र पूष्पावलियाँ को धारण किया। (श्लोक २१३-२१९) तत्पश्चात् सीतेन्द्र सीता का रूप धारण कर सखियों के साथ राम के निकट पहुंची और उनसे बोली, 'हे प्रिये, मैं आपकी प्रिय सीता आपके पास आई हैं। हे नाथ, उस समय मैंने स्वयं को दुःखी समझकर दीक्षा ग्रहण कर ली थी और आप जैसे प्रेमिक का परित्याग कर दिया था; किन्तु बाद में मुझे बहुत परिताप हुआ। आज इन विद्याधर कुमारियों ने आकर मुझसे कहा तुम दीक्षा त्याग
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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