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प्रयत्नशील हो गए। वे विशेष रूप से ममताहीन होकर तप-समाधि में लीन रहने लगे।
(श्लोक १९२) ___ एक बार मुनि राम षष्ठ उपवास के बाद पारणे के लिए युगमात्र दृष्टि रखते हुए (अर्थात् हस्तमात्र भूमिका आवलोकन करते हुए) संदन स्थल नामक नगर में गए। चन्द्र-से नयनों को आनन्द देने वाले राम को जमीन पर पैदल चलते हुए देखकर नगरवासी अत्यन्त आनन्द के साथ उनके सम्मुख गए । नगर की स्त्रियाँ राम को भिक्षा देने के लिए विभिन्न प्रकार के आहार से पूर्ण पात्र लेकर घर के दरवाजों पर खड़ी हो गईं। उस समय नगरवासी मारे हर्ष के इतना कोलाहल कर रहे थे कि उस कोलाहल में हाथी आलान स्तम्भों को उखाड़ कर भागने लगे। अश्व भड़क कर उत्कर्ण हुए। बन्धन तोड़ने का प्रयत्न करने लगे।
(श्लोक १९३-१९६) राम उजित आहार (जो सबके खाने के पश्चात् बच जाता है) लेना चाह रहे थे। अत: नगरवासी जो आहार उन्हें देना चाह रहे थे उसे लिए बिना ही वे राजप्रासाद में प्रविष्ट हो गए। वहाँ प्रतिनन्दी नामक राजा ने उन्हें उजित आहार दिया। राम ने भी उस आहार को विधिवत् ग्रहण किया। देवों ने वसुधारा आदि पाँच दिव्य प्रकट किए। तदुपरान्त राम जिस वन से आए थे उसी वन को लौट गए।
(श्लोक १९७-१९९) मेरे जाने से लोकालय में क्षोभ उत्पन्न होता है, लोग एकत्र होते हैं अतः इसी वन में यदि भिक्षा के समय आहार पानी प्राप्त होगा तो पारना करूंगा नहीं तो अनाहारी रहूंगा। ऐसा अभिग्रह लेकर परम समाधि में लीन होकर राम प्रतिमा-चित्र की भाँति स्थिर हो गए।
(श्लोक २००-२०२) संयोगवश विपरीत शिक्षा प्राप्त गति सम्पन्न अश्व राजा प्रतिनन्दी को उसी वन में ले गया जिस वन में राम प्रतिभा धारण कर खड़े थे। वहाँ जाकर वह अश्व नन्दनपुण्य नामक सरोवर के कीचड़ में फंसकर स्थिर हो गया। उनका सैन्यदल भी उन्हें खोजता हुआ वहाँ आ पहुंचा। कीचड़ से अश्व को निकालकर राजा ने वहीं छावनी डाल दी। तदुपरान्त स्नानादि से निवृत्त होकर परिवार सहित छावनी में ही भोजन किया। उसी समय ध्यान से निवृत्त होकर राम पारणा करने की इच्छा से छावनी में गए। राजा