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साथ मुग्ध बने रावण ने उसी जगह गान्धर्व विवाह कर लिया।
(श्लोक ८५-९१) कन्याओं के साथ आगत आरक्षकों ने यह देखकर अपने-अपने प्रभु को निवेदन किया कि कोई व्यक्ति कन्याओं को विवाह कर लिए जा रहा है। यह सुनकर खेचरेन्द्र अमर सन्दर क्रोध से उद्दीप्त बना कन्याओं के पिताओं के साथ रावण को मारने के लिए उसके पीछे दौड़ा । उन्हे आते देखकर नववधू कन्याएँ भयभीत होकर रावण से बोलीं, 'हे नाथ, हे स्वामिन् ! विमान को द्रुतगति से चलाइए, देरी मत करिए। कारण, अमरसुन्दर अकेला ही अजेय है फिर अभी तो उसके साथ कनक, बुध आदि बहुत से योद्धा हैं।' यह सुनकर रावण जरा हँसकर बोला, 'डरो मत तुम लोग, अभी, जैसे सर्प के साथ गरुड़ युद्ध करता है, उसी प्रकार उनके साथ मुझे युद्ध करते देखोगी।' रावण जब यह कह रहा था उसी समय पहाड़ को आच्छादित कर पहाड़ से जैसे मेघ उड़कर आते है उसी प्रकार अस्त्रशस्त्रों से रावण को आच्छादित कर खेचर सेना दौड़ी। शक्तिधर रावण ने अपने शस्त्रों द्वारा उनके शस्त्रों को काटकर न मारने की इच्छा से प्रस्वापन अस्त्र के द्वारा उन सबको मोहित कर नागपाश में पशुओं की तरह आबद्ध कर दिया। खेचर कन्याओं ने अपनेअपने पिता की जीवन भिक्षा मांगी। तब रावण ने सबको मुक्त कर दिया । खेचरगण तदुपरान्त अपने अपने नगर को लौट गए और रावण नव-विवाहिताओं को लेकर स्वयंप्रभ नगर को लौट गया। आनन्दित पुरवासियों ने रावण का स्वागत एवं अभ्यर्थना की।
(श्लोक ९२-१००) कुम्भकर्ण का विवाह कुम्भपुर के राजा महोदर की पत्नी सुरूपनयना के गर्भ से उत्पन्न तड़ित्माला के साथ हुआ। विद्युतमाला-सी कान्तियुक्त तडित्माला के स्तन पूर्ण कुम्भ के-से थे। विभीषण का विवाह वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी के ज्योतिषपुर के राजा वीर की पत्नी नन्दवती के गर्भ से उत्पन्न कन्या पंकजश्री के साथ हआ। वह देवांगना-सी रूप सम्पन्ना और पंकज शोभा का अपहरण करने वाली पंकज-नयनी थी। (श्लोक १०१-१०४)
____ मन्दोदरी ने इन्द्र-से वैभव सम्पन्न और अद्भुत पराक्रमशाली इन्द्रजीत नामक पुत्र को जन्म दिया। उसके कुछ ही पश्चात् उसने