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हेमवती के गर्भ से उत्पन्न उसकी कन्या का नाम था मन्दोदरी । जब वह पूर्ण यौवना हुई तब मय उसके योग्य पति खोजने लगा । समस्त विद्याधर कुमारों के रूप, गुणों की तुलना कर भी उनमें वह उसके उपयुक्त वर नहीं पा सका । इससे वह बहुत ही चिन्तित था । एक दिन मन्त्री उससे आकर बोला- 'महाराज, आप चिन्तित न हों । रत्नश्रवा का पुत्र दशमुख बलवान् और रूपवान् है । वह अपनी कन्या के लिए उपयुक्त वर है । पर्वतों में जैसे मेरु है उसी प्रकार विद्याधर कुमारों के मध्य सहस्र विद्या का साधक, वह कुमार है | देव भी उसे चलित नहीं कर सकते ।' ( श्लोक ७४-७९)
यह सुनकर मय बोला - 'ठीक है ।' फिर वह मन्दोदरी को रावण को अर्पित करने के लिए जाति, बन्धु, परिवार, सैन्य सहित स्वयंप्रभ नगरी में पहुंचा । जाने के पहले ही अपने आने की खबर उन लोगों को दे दी थी। वहां सुमाली आदि ज्येष्ठ पुरुषों ने मन्दोदरी के साथ रावण का सम्बन्ध स्वीकार कर लिया । सुमाली और मय ने एक शुभ दिन देखकर खूब धूमधाम से उनका विवाहसंस्कार पूर्ण कर दिया । विवाहोत्सव के पश्चात् मय परिवार सहित अपने नगर को लौट गया । रावण सुन्दरी मन्दोदरी के साथ आनन्दपूर्वक क्रीड़ा करने लगा । ( श्लोक ८०-८४)
एक बार रावण मेघरथ पर्वत पर क्रीड़ा करने गया । पर्वतों पर मेघों के टिक जाने से लगता था मानो वे पंखयुक्त हों और अभी उड़ जाएँगे । क्षीरोद सागर में जैसे अप्सराएँ स्नान करती हैं उसी प्रकार वहां एक सरोवर में एक हजार खेचर कन्याओं को स्नान करते देखा । उन्होंने भी रावण को देखा । पद्मिनियां जिस प्रकार सूर्य को देखकर विकसित हो जाती हैं उसी प्रकार वे अपने नेत्र रूपी कमलों को विकसित कर पति रूप में रावण को पाने की कामना से सानुराग उसे देखने लगीं । तदुपरान्त काम पीड़िता वे लज्जा का परित्याग कर उसके पास गयीं और बोलीं'आर्य, आप हम लोगों को पत्नी रूप में ग्रहण करें ।' उनमें सर्वश्री और सुरसुन्दर की कन्या पद्मावती, मदनवेगा और बुध की कन्या अशोकलता, सन्ध्या एवं कनक की कन्या विद्युतप्रभा और अन्य सभी लोकप्रसिद्ध वंश की कन्याएँ थीं । इन मुग्धा कन्याओं के