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________________ 16. उसी समय आकाश से अवतरित होकर दिशा-विदिशाओं को आलोकित करती एक हजार विद्याएँ रावण के सम्मुख स्थित होकर रावण को सम्बोधित कर बोली-'हम तुम्हारे अधीन हैं। (श्लोक ५८) प्रज्ञप्ति, रोहिणी, गौरी, गान्धारी, नभःसंचारिणी, काम दायिनी, कामगामिनी, अणिमा, लघिमा, अक्ष्योभ्या, मनःस्तम्भनकारिणी, सूविधाता, तपोरूपा, दहनी, विपुलोदरी, शुभप्रदा, रजोरूपा, दिवारा त्रिविधायिनी, बज्रोदरी, समाकृष्टि, अदर्शनी, अजरामरा, अनलस्तम्भनी, तोयस्तम्भनी, गिरिदारिणी, अवलोकिनी, बलि, घोरा, वीरा, भुजंगिनी, वारिणी, भूवना, अवन्ध्या, दारुणी, मदनाशनी, भास्करी, रूपसम्पन्ना, रोशनी, विजया, जया, वर्द्धनी, मोचनी, वाराही, कुटिलाकृति, चित्तोद्भवकरी, शान्ति, कौवेरी, वशकारिणी, योगेश्वरी, बलोत्साही, चण्डा, भीति, प्रधर्षिणी, दुनिवारा, जगत्कम्पकारिणी, भानुमालिनी आदि एक हजार महाविद्याएँ पूर्व जन्म की सूकृति के फलस्वरूप महात्मा रावण को अल्प दिनों में ही सिद्ध हो गयीं। सम्वृद्धि, जृम्भणी, सर्वहारिणी. व्योमभामिनी व इन्द्राणी-ये पांच विद्याएँ कुम्भकर्ण ने सिद्ध की। सिद्धार्था, शत्रुदमनी, नियाघाता और आकाशगामिनी ये चार विद्याएँ विभीषण ने सिद्ध कर लीं। जम्बूद्वीप के अधिपति ने रावण के निकट आकर क्षमा मांगी। महान् पुरुषों के प्रति अपराध किया हो तो (अपनी भलाई का) उपाय क्षमा प्रार्थना ही है। पूर्व कृत विघ्न के प्रायश्चितस्वरूप उसने रावण के लिए वहां स्वयंप्रभ नामक नगर बसा दिया। विद्या-सिद्धि का संवाद पाते ही उसके माता-पिता, बहन और आत्मीय स्वजनों ने वहां आकर उनको सम्बद्धित किया। माता-पिता की दृष्टि में अमृतवृष्टि और आत्मीय स्वजनों के हृदय में आनन्द-उल्लास उत्पन्न कर वे वहां रहने लगे । तत्पश्चात् रावण ने छह दिनों का उपवास कर दिक्-समूह पर विजयलाभ करने के लिए उपयोगी चन्द्रहास नामक श्रेष्ठ खड्ग प्राप्त की। (श्लोक ५९-७३) उस समय वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी की अलङ्कार रूप सुर-संगीत नामक नगरी में मय नामक राजा राज्य करता था। समस्त गुणों की निवासरूप उसकी पत्नी का नाम हेमवती था।
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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