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[249 खेचरों के अधिपति बने।'
(श्लोक ६८-७२) __ 'धनदत्त और वसुदत्त के मित्र याज्ञवल्क्य ब्राह्मण का जीव भव-भ्रमण कर तुम विभीषण हुए। शम्भु को मारने के पश्चात् श्रीभूति का जीव स्वर्ग जाता है। वहाँ से च्युत होकर सुप्रतिष्ठपुर में पुनर्वसु नामक विद्याधर बनता है। एक बार कामातुर होकर उसने पुण्डरीक विजय से त्रिभुवनानन्द नामक चक्रवर्ती की कन्या अनङ्गसुन्दरी का हरण कर लिया। चक्रवर्ती ने विद्याधरों को उसके पीछे भेजा । युद्ध में पुनर्वसु विवृत हो उठा और अनङ्गसुन्दरी उसके विमान से एक लतागृह में जा पड़ी। पुनर्वसु ने उसे पाने का निदान कर दीक्षा ग्रहण कर ली। वहाँ से मृत्यु प्राप्त कर वह देवलोक में जाता है। वहाँ से च्युत होने पर उसका जीव लक्ष्मण रूप में उत्पन्न हुआ।'
(श्लोक ७३-७७) _ 'अनङ्गसुन्दरी वन में रहकर उग्र तपस्या करती है। अन्ततः अनशन ले लेती है। अनशन काल में एक अजगर उसे निगल जाता है। समाधि मरण प्राप्त कर वह देवलोक में देवी बनती है। वहाँ से च्यव कर वही विशल्या नामक लक्ष्मण की पत्नी बनती है।'
(श्लोक ७८-७९) 'गुणधर नामक गुणवती का भाई भव-भ्रमण कर कुण्डलमण्डित नामक राजपुत्र बनता है । उस जन्म में वह चिरकाल तक श्रावक-धर्म पालन कर मृत्यु के पश्चात् सीता का सहोदर भाई भामण्डल बनता है।'
(श्लोक ८०-८१) 'काकन्दी नामक नगरी में वामदेव ब्राह्मण की पत्नी श्यामला के वसुनन्द और सुनन्द नामक दो पुत्र हुए। एक दिन वे दोनों अपने घर में बैठे हए थे। उसी समय एक मास का उपवास किए एक मुनि वहाँ आए। उन्होंने भक्तिभाव से उन्हें आहार दिया। इस दान के प्रभाव से मृत्यु के पश्चात् वे उत्तर कुरु में युगलिक रूप में उत्पन्न हुए। वहाँ से च्युत होकर काकन्दी नगरी में वे वामदेव राजा की रानी सुदर्शना के गर्भ से प्रियङ्कर व शुभकर नामक पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। दीर्घकाल तक वहाँ राज्य करने के पश्चात् उन्होंने दीक्षा ग्रहण की और मृत्यु के पश्चात् वेयक देव रूप में उत्पन्न हुए। वहाँ से च्यव कर वे लवण और अंकुश बने हैं। इनकी पूर्वजन्म की माँ सुदर्शना दीर्घकाल तक भव-भ्रमण कर सिद्धार्थ