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________________ 248] II! तब मुनि ने यह अभिग्रह लिया जब तक उनका कलङ्क दूर नहीं होगा वे कायोत्सर्ग में रहेंगे। मुनि पर लगाए गए मिथ्या दोषारोपण से शासन देव कुपित हो उठे। उन्होंने वेगवती के मह में रोग उत्पन्न कर दिया। उसके पिता ने जब उसका कुकृत्य सुना तो उसे तिरस्कृत कर दिया। पिता के रोष और रोग के भय से वेगवती मनि के निकट गई और समस्त लोगों के सम्मख उच्च स्वर से बोली, 'हे प्रभ, आप सर्वथा निर्दोष हैं। मैंने आप पर मिथ्या दोषारोपण किया था। अतः हे क्षमा-निधि, आप मेरा अपराध क्षमा करें।' उसकी यह बात सुनकर लोग पुनः मुनि को वन्दन करने लगे । वेगवती भी उसी समय से श्रद्धालु श्राविका बन गई। उसका रूप देखकर शम्भु राजा ने उससे विवाह करना चाहा। श्रीभूति बोला, 'मैं मिथ्या दृष्टि को अपनी कन्या नहीं दूंगा।' यह सुनकर शम्भु राजा ने श्रीभूति को मार डाला और बलपूर्वक वेगवती से सम्भोग किया। उसी समय वेगवती ने उसे शाप दिया कि जन्मान्तर में मैं तेरी मृत्यु का कारण बनेगी। (श्लोक ५२-६४) 'शम्भु राजा ने वेगवती का परित्याग कर दिया। तब उसने हरिकान्ता नामक साध्वी के पास जाकर दीक्षा ग्रहण कर ली। मृत्यु के पश्चात् वह ब्रह्म देवलोक में उत्पन्न हुई। वहाँ से च्युत होकर जनक राजा की कन्या जानकी बनी। पूर्व जन्म में उसने सुदर्शन मुनि पर झूठा कलङ्क लगाया था इसीलिए इस जन्म में लोगों ने उस पर मिथ्या कलङ्क लगाया। श्लोक ६५-६७) ___ 'शम्भ राजा का जीव भव-भ्रमण करता हुआ कुशध्वज नामक ब्राह्मण की पत्नी सावित्री के गर्भ से प्रभास नामक पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। कुछ दिनों पश्चात् उसने विजयसेन मुनि से दीक्षा ग्रहण की। दुर्द्धर तप कर वह अनेक प्रकार के परिषहों को सहन करने लगा। प्रभास मुनि ने एक बार विद्याधर राजा कनकप्रभ को इन्द्र जैसी समृद्धि के साथ सम्मेत शिखर की यात्रा करते हुए देखा। मुनि ने उसी समय निदान कर लिया कि मैं अपनी तपस्या के फलस्वरूप पर जन्म में विद्याधर-सा समृद्धि सम्पन्न बनू । मृत्यु के पश्चात् वे तृतीय देवलोक में उत्पन्न हुए । वहाँ से च्युत होने पर वे ही हे विभीषण, तुम्हारे अग्रज रावण बने । कनकप्रभ की सम्पत्ति देखकर जो निदान किया था उसी के फलस्वरूप वे समस्त
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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