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में रहा जीव दिखलाई नहीं पड़ता ।'
( श्लोक २६-२८) 'मुनि के उपदेश उसे हृदय को अमृत से सींचने की भाँति सुखकारी लगे । वह श्रावक बन गया। आयु पूर्ण होने पर मृत्यु प्राप्त कर सौधर्म देवलोक में देव रूप में जन्म ग्रहण किया । वहाँ से च्युत होकर वह महापुर नगर के मेरुश्रेष्ठी के घर उसकी पत्नी धारणी के गर्भ से पद्मरुचि नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ । वह पूर्ण श्रावक बन गया । एक बार पद्मरुचि घोड़े पर चढ़कर गोकुल जा रहा था । दैव योग से उसने राह में एक मरणासन्न वृद्ध बैल को पड़े हुए देखा । दयालु पद्मरुचि अश्व से उतरकर उसके पास गया और उसे नमस्कार - मन्त्र सुनाया । नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से वह बैल मरकर उस नगर के राजा छन्नछाया के घर श्रीदत्ता रानी के गर्भ से पुत्र रूप में पैदा हुआ । उसका नाम रखा गया वृषभध्वज । एक बार वृषभध्वज घूमते हुए उसी वृद्ध बैल के मृत्यु- स्थान पर पहुंच गया । पूर्वजन्म का मृत्यु-स्थान देखकर उसे जाति स्मरण-ज्ञान उत्पन्न हो गया । अतः उसने वहाँ एक चैत्य का निर्माण करवाया । चैत्य की एक ओर की दीवार पर उसने एक चित्र अङ्कित करवाया । जिसका विषय था- एक वृद्ध मरणासन्न बैल को एक व्यक्ति नमस्कार मन्त्र सुना रहा है और उसके पास एक जीन कसा हुआ अश्व खड़ा है । तदुपरान्त उसने चैत्य के रक्षक को यह निर्देश दिया कि 'जो व्यक्ति इस चित्र के गूढ़ अर्थ को समझ सके उसकी खबर मुझे तुरन्त देना ।' ऐसा कहकर कुमार अपने प्रासाद को लौट गया । ( श्लोक २९-३७ )
'एक बार पद्मरुचि श्रेष्ठी वन्दना करने उसमें आए और अर्हतु वन्दना कर दीवाल पर अङ्कित चित्र को देखा। वह देखकर विस्मित बने वे बोल उठे, 'इस चित्र में अङ्कित विषय तो मेरे जीवन का है ।' रक्षकों ने तत्क्षण जाकर राजकुमार वृषभध्वज को यह सूचना दी। राजकुमार तुरन्त मन्दिर आए और श्रेष्ठी से पूछा - 'आप चित्र में अङ्कित विषय के सम्बन्ध में क्या जानते हैं ?" श्रेष्ठी बोले, 'मुझे मरणासन्न बैल को नमस्कार मन्त्र सुनाते देखकर किसी ने यह चित्र अङ्कित कर दिया है ।' सुनकर श्रेष्ठी को राजकुमार ने नमस्कार किया और कहा, 'हे भद्र, वह वृद्ध बैल मैं ही हूं । नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से अब मैं राजकुमार बना हूं ।