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मोक्ष को जाओगे । शिव-सुख प्राप्त करोगे।' (श्लोक १०-१४)
विभीषण ने मुनि को नमस्कार कर कहा, 'हे प्रभु, रावण ने पूर्व जन्म के किन कर्मों के कारण सीता का हरण किया ? किस कर्म के कारण लक्ष्मण ने उनका वध किया एवं सुग्रीव, भामण्डल, लवण, अंकुश और मैं किस कर्म के कारण राम के इतने स्नेहशील
(श्लोक १५-१६) मुनि बोले, 'दक्षिण भरतार्द्ध में क्षेमपुर नामक एक नगर था। उस नगर में नयदत्त नामक एक वणिक रहता था। उसकी पत्नी सुनन्दा के गर्भ से दो पुत्र उत्पन्न हुए। एक का नाम था धनदत्त, दूसरे का नाव था वसुदत्त । उन दोनों की याज्ञवल्क्य नामक एक ब्राह्मण से मित्रता हो गई। उसी नगर में सागरदत्त नामक एक अन्य वणिक रहता था। उसकी दो सन्ताने थीं-गुणधर नामक एक पुत्र और गुणवती नामक एक कन्या। सागरदत्त ने नयदत्त के गुणवान् पुत्र धनदत्त के साथ अपनी कन्या का विवाह करने का वचन दिया। कन्या की माँ रत्नप्रभा ने धन के लोभ में श्रीकान्त नामक एक अन्य धनाढय व्यक्ति के साथ गुप्त रीति से कन्या का सम्बन्ध तय कर लिया। याज्ञवल्क्य को जब यह ज्ञात हुआ तो वह अपने मित्र के इस प्रकार के वचन सहन करने में असमर्थ होकर उसे जाकर सब कुछ बता दिया। यह सुनकर वसुदत्त श्रीकान्त को मारने के लिए दौड़ा। दोनों ही एक-दूसरे की तलवार से घायल होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए। मृत्यु के पश्चात् दोनों ने ही विन्ध्य अटवी में मृग रूप में जन्म ग्रहण किया। गुणवती भी कुमारी अवस्था में ही मृत्यु प्राप्त कर विन्ध्य अटवी में ही मृगी रूप में उत्पन्न हुई। वहाँ भी इन दोनों ने इस मृगी के लिए लड़कर प्राण गँवाए। इस भाँति परस्पर वैर के कारण दोनों भव अटवी में भटकने लगे।'
(श्लोक १७-२५) 'धनदत्त अपने भाई को मृत्यु से अत्यन्त दुःखी होकर उद्भ्रान्त-सा इधर-उधर घूमने लगा। एक रात क्षुधातुर धनदत्त ने कुछ साधुओं को देखकर खाने को माँगा। प्रत्युत्तर में एक साधू ने कहा, 'हे भाई! मुनिगण दिन में अन्न-संग्रह कर नहीं रखते तो रात में उनके पास अन्न कहाँ से आएगा? हे भद्र, तुम लोगों को भी रात को खाना उचित नहीं है । कारण, ऐसे अन्धकार में अन्नादि