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________________ 244) दशम सर्ग चन्दन जल के छींटे डालकर राम को होश में लाया गया। कुछ स्वस्थ होते ही राम बोल उठे, 'मनस्विनी सीता कहाँ है ? हे भूचरगण, हे खेचरगण ! यदि तुम लोग जीवित रहना चाहते हो तो मुझे बताओ मेरी सीता कहाँ है ? हे वत्स लक्ष्मण, मुझे तुरन्त धनुष-बाण दो। मैं इतना दुःखी हो रहा हूं और ये सब इतने स्वस्थ और उदासीन क्यों ?' (श्लोक १-३) ऐसा कहकर राम धनुष-बाण उठाने लगे। लक्ष्मण बोले, 'हे आर्य ! आप यह क्या कर रहे हैं ? ये तो सब आपके सेवक हैं । न्याय के लिए निन्दा के भय से आपने जिस प्रकार सीता का परित्याग किया था उसी प्रकार स्वार्थ के लिए, आत्महित के लिए सीता ने हम सबका परित्याग कर दिया । आपकी प्रिय सीता ने आपके सम्मुख ही केशोत्पाटन कर जयभूषण मुनि के पास जाकर दीक्षा ग्रहण कर ली है । इन महर्षि को इस समय केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। उनके ज्ञान-प्राप्ति के उपलक्ष में केवलज्ञान-महोत्सव करना हमारा कर्तव्य है । हे प्रभो ! महाव्रतधारिणी सीता भी वहीं है । वे अब निर्दोष शुद्ध सती मार्ग की भाँति मोक्ष मार्ग का निर्देश ले रही हैं।' (श्लोक ४-८) लक्ष्मण की बात सुनकर राम स्थिर हुए और बोले, 'प्रिय सीता ने केवली भगवन्त से दीक्षा ग्रहण कर ली है, यह बहुत अच्छा हुआ। (श्लोक ९) तदुपरान्त राम जयभूषण मुनि के पास गए और उन्हें वन्दन कर उनके सम्मुख बैठ गए। उनकी देशना सूनी। देशना की समाप्ति पर बोले, 'मैं आत्मा को नहीं जानता। अतः दया कर बताइए कि मैं भव्य हूं या अभव्य ?' केवली भगवान् ने उत्तर दिया, 'हे राम! तुम केवल भव्य ही नहीं, तुम इस जीवन में मोक्ष भी प्राप्त करोगे।' राम ने पुनः पूछा, 'हे भगवन्, मोक्ष तो दीक्षा प्राप्त करने के पश्चात् ही मिलती है और सब कुछ परित्याग करने के पश्चात् ही ली जाती है। किन्तु, भाई लक्ष्मण का परित्याग मेरे लिए सम्भव नहीं है। अतः मोक्ष किस प्रकार पाऊँगा?' केवली बोले, 'अभी तक तुम्हारा समय वैभव भोग करने का था। उस भोग के पूर्ण होने पर तुम निःसंग वैरागी होकर दीक्षा लोगे और
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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