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________________ 242] रावण ने उसका हरण किया । तदुपरान्त मैंने उसका त्याग कर वन में भेज दिया । अन्ततः अब अग्नि प्रवेश का कष्ट उपस्थित हुआ है । यह सब कुछ मैंने ही किया । मेरे द्वारा ही हुआ । ( श्लोक २०४ - २०७ ) राम जब इस प्रकार चिन्तन कर रहे थे उसी समय सीता उस प्रज्वलित अग्नि के निकट गई और सर्वज्ञ देवों को स्मरण कर बोल उठी, 'हे लोकपाल, हे जल समूह ! सुनो- यदि आज तक मैंने राम के सिवाय किसी पुरुष की इच्छा की हो तो यह अग्नि मुझे दग्ध कर डाले और यदि नहीं की है तो इसका स्पर्श जल की तरह शीतल हो जाए ।' ( श्लोक २०८ - २११) करते हुए सीता उस अग्नि निर्वापित की तत्पश्चात् नमस्कार महामन्त्र का जाप अग्नि कुण्ड में कूद पड़ी । उसके कूदते ही गर्त हो गई । उस गतं में स्वच्छ जल भर गया और उसने एक सरोवर का रूप धारण कर लिया । देवों ने सीता के सतीत्व से सन्तुष्ट होकर उस जल में कमल पर सिंहासन स्थापित किया । सीता जाकर उस सिहासन पर बैठ गई । उस सरोवर का जल समुद्रतरंगों की भाँति तरंगायित होने लगा । जल में से कहीं हुंकार ध्वनि, कहीं गुल - गुल शब्द, कहीं भेरीघोष, कहीं कल-कल तो कहीं खल - खल शब्द निकलने लगा । ( श्लोक २१२ - २१४ ) तदुपरान्त ज्वार के समय समुद्र जिस प्रकार स्फीत हो जाता है उसी प्रकार वह जल स्फीत हो गया । वह जल उस गर्त से निकल कर बड़े-बड़े मञ्चों को आच्छादित कर प्रवाहित होने लगा । विद्याधरगण भयभीत होकर आकाश में उड़ गए; किन्तु भूचर मनुष्य आर्तस्वर में बोलने लगे, 'हे महासती सीता ! हे देव ! हमें बचाओ, हमारी रक्षा करो ।' ( श्लोक २१५-२१६) सीता ने उस स्फीत जल को दोनों हाथों से दबा दिया । जल पूर्ववत् हो गया । उस सरोवर की शोभा अत्यन्त मनोहारी हो गई थी । उसमें उत्पन्न कुमुद, पुण्डरीक जाति के कमल प्रस्फुटित हो गए । कमल गन्ध से आकृष्ट होकर उन्मत्त भ्रमर गुन-गुन करने लगे । सरोवर के चारों ओर मणिमय पाषाणों से बँधा घाट परि दृष्ट होने लगा । निर्मल जल की तरंगें आ-आकर किनारों से टकराने लगीं । ( श्लोक २१७-२१९)
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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