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वह किस प्रकार शीलवती हो गई ? आप लोग आगे फिर उसे दूषित कह सकेंगे। इसीलिए मेरी इच्छा है सीता सबकी प्रतीति के लिए अग्नि-दिव्य कर अग्नि में प्रवेश करे।' (श्लोक १९३-१९५)
तदुपरान्त राम ने तीन सौ हाथ दीर्घ, तीन सौ हाथ प्रस्थ दो पुरुष प्रमाण गम्भीर गर्त खुदवाया और उसे चन्दन काष्ठ से भर दिया।
(श्लोक १९६) वैताढय गिरि की उत्तर श्रेणी पर हरि विक्रम राजा का जयभूषण नामक पुत्र था। उसके ८०० विवाहित स्त्रियाँ थीं। एक बार उसने अपनी किरणमण्डला नामक पत्नी को हिमशिख नामक उसके मामा के साथ एक शय्या पर सोते हुए देखा। इससे ऋद्ध होकर उसने किरणमण्डला को घर से निकाल दिया; किन्तु उसके पश्चात् ही उसके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। अतः उसने दीक्षा ले ली। किरणमण्डला मरकर विद्युतद्रष्टा नामक राक्षसी के रूप में उत्पन्न हुई। जयभूषण सीता के दिव्य होने के पहले दिन रात्रि में अयोध्या के बाहर कायोत्सर्ग ध्यान में स्थित था। विद्युतद्रष्टा वहाँ आकर उपसर्ग करने लगी; किन्तु अविचल रहे । शुभ ध्यान के कारण सीता के दिव्य होने के दिन उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। केवलज्ञान महोत्सव करने के लिए इन्द्रादि देव वहाँ आए । उसी समय सीता शुद्धि प्रमाणित करने के लिए अग्नि प्रवेश कर रही थी। देवों ने जब यह देखा तो इन्द्र से निवेदन किया हे प्रभु, लोगों की मिथ्या निन्दा के कारण सीता माज अग्नि प्रवेश कर रही है। यह सुनकर इन्द्र ने स्वपदातिक सैन्य के सेनापति को सीता की सहायता के लिए प्रेरित किया और स्वयं जयभूषण मुनि के केवलज्ञान महोत्सव में योग देने के लिए चले गए।
(श्लोक १९७-२०३) उधर राम की आज्ञा से चन्दन काष्ठ प्ररित उस गर्त में सेवकों ने अग्नि प्रज्वलित कर दी। अग्नि ने भयंकर रूप धारण कर लिया। उस लपलपाती हुई अग्नि की ओर तो देखना भी असम्भव हो गया था। अग्नि की उस विकट ज्वाला को देखकर राम सोचने लगे-ओफ, यह बड़ा विषम कार्य हो गया। महासती सीता तो अभी निःशंक होकर इस अग्नि में कूद पड़ेगी। प्रायः देव और दिव्यों की गति विषम होती है। सीता मेरे साथ वन गई,