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मूच्छित हो गए। उन पर चन्दन जल के छींटे डाले गए जिससे ज्ञान लौट आने पर पुत्र वात्सल्य से अधीर राम अश्रुपूर्ण नेत्रों से लक्ष्मण को साथ लेकर लवण और अंकुश से मिलने गए । उन्हें आते देखकर विजयी लवण और अंकुश शस्त्रों का परित्याग कर रथ से नीचे उतरे और राम-लक्ष्मण के चरणों में गिर पड़े। राम ने उन्हें उठाकर छाती से लगाया । फिर गोद में बैठाकर मस्तक यूँ घा । तदुपरान्त शोक और स्नेह से व्याकुल होकर उच्च स्वर से क्रन्दन करने लगे । राम की गोद से लक्ष्मण ने उन्हें अपने गोद में बैठाकर छाती से लगा लिया और अश्रु-भरे नयनों से उनके मस्तक का आघ्राण किया । शत्रुघ्न को पिता तुल्य समझ कर उन लोगों ने उनके चरणों में साष्टाङ्ग प्रणाम किया । शत्रुघ्न ने भी उन विनीत पुत्रों को आलिंगन में ले लिया। दोनों पक्षों के अन्यान्य राजागण एकत्र होकर इस अपूर्व मिलन के आनन्द को देखकर हर्षित हो गए ।
( श्लोक १५३-१६० )
पुत्रों का पराक्रम और पिता से उनका मिलन देखकर सीता हर्षित हो गई । वह वहाँ से विमान में बैठकर पुण्डरीकपुर चली गई । उन जैसे बलवान् पुत्रों को प्राप्त कर राम-लक्ष्मण बहुत आनन्दित हुए । समस्त भूचर और खेचर भी प्रसन्न हो उठे । भामण्डल ने बज्रजङ्घ का राम और लक्ष्मण से परिचय करवाया । बज्रजङ्घ ने चिरकाल के सेवक की तरह उन्हें प्रणाम किया ।
( श्लोक १६१-१६३) राम बज्रजङ्घ से बोले, 'हे भद्र, आपने मेरे पुत्रों का लालनपालन कर उन्हें बड़ा किया और उन्हें इस अवस्था में ले आए इसलिए आप मेरे लिए भामण्डल के समान हैं ।'
( श्लोक १६४ )
तदुपरान्त राम-लक्ष्मण अपने पुत्रों के साथ पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या गए । विस्मय भरे लोग एड़ी के बल पर खड़े होकर गर्दन उठा उठा कर लवण और अंकुश को देखने लगे और उनकी स्तुति करने लगे । राम अपने प्रासाद के निकट पहुंचे । रथ से उतर कर भीतर प्रविष्ट हुए। महा महोत्सव करवाया ।
राम ने पुत्रों के आगमन में
( श्लोक १६५ - १६७) लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण, हनुमान, अङ्गद आदि सभी ने मिलकर राम से निवेदन किया