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रथ
को पुनः युद्धभूमि लक्ष्मण चक्र लेकर
1237 देखकर विराध डर गया और रथ को रणभूमि से अयोध्या की ओर ले जाने लगा । राह में ही लक्ष्मण को होश आ गया । वे क्रुद्ध होकर बोले, 'तुमने यह सर्वथा नया कार्य कर डाला ? राम के भाई और राजा दशरथ के पुत्र के लिए युद्धभूमि से चला जाना अनुचित है । अतः जहाँ शत्रु है वहीं मुझे शीघ्र ले चलो। मैं अभी चक्र से शत्रु का शिरश्च्छेद कर डालू गा ।' ( श्लोक १३९ - १४२) लक्ष्मण का कथन सुनकर विराध में ले आया । 'खड़ा रह खड़ा रह ́ कहते हुए उसे घुमाने लगे । घूमता हुआ चक्र सूर्य का भ्रम उत्पन्न करने लगा । लक्ष्मण ने उसी अस्खलित गति से चक्र को घुमाकर क्रोधपूर्वक अंकुश पर फेंका । आगत चक्र को काटने के लिए अंकुश ने अनेक तीरों को छोड़ा; किन्तु वह चक्र काटा नहीं गया। पूरे वेग से वह चक्र आया और अंकुश को प्रदक्षिणा देकर उसी प्रकार लक्ष्मण के हाथों में लौट गया जिस प्रकार पक्षी नीड़ में लौट जाते हैं । लक्ष्मण ने द्वितीय बार चक्र निक्षेप किया; किन्तु दूसरी बार भी चक्र अकुश को प्रदक्षिणा देकर गजशाला से भागा हाथी जिस प्रकार पुनः गजशाला में लौट जाता है उसी प्रकार लक्ष्मण के हाथों में लौट ( श्लोक १४३-१४६) यह देखकर राम-लक्ष्मण खेदपूर्वक सोचने लगे तब क्या ये दोनों कुमार ही भरतक्षेत्र के वासुदेव और बलदेव हैं, हम नहीं हैं ? जब वे लोग इस प्रकार सोच रहे थे उसी समय सिद्धार्थ सहित नारद मुनि आए और खेद भरे राम और लक्ष्मण से बोले, 'हे राम ! आनन्दित होने के बदले तुम खेद क्यों कर रहे हो ? ये दोनों तुम्हारे पुत्र हैं। सीता के गर्भ से इनका जन्म हुआ है । इनका नाम लवण और अंकुश है । युद्ध के बहाने ये तुम्हें देखने आए हैं । ये तुम्हारे शत्रु नहीं हैं इसीलिए इन पर तुम्हारे चक्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ा । चक्र मित्र पर कार्यरत नहीं होता । अतीत में बाहुबली पर भी तो भरत द्वारा निक्षिप्त चक्र निष्फल हो गया ( श्लोक १४७ - १५२ )
गया ।
था ।'
तदुपरान्त नारदमुनि ने सीता - परित्याग से लेकर युद्ध पर्यन्त जगत्-विस्मयकारी घटनाओं का वर्णन किया उस वृत्तान्त को सुनकर आश्चर्य, लज्जा, आनन्द और शोक से व्याकुल होकर राम
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