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________________ 236] और सारथी राजा पृथु ने अंकुश के रथ को एक-दूसरे के सामने लाकर खड़ा कर दिया। चारों का युद्ध प्रारम्भ हुआ । चारों चतुर सारथी भी विभिन्न प्रकार से रथ को घमाने लगे। चारों योद्धा नाना प्रकार के अस्त्रों से एक-दूसरे पर वार करने लगे। (श्लोक १२५-१२८) लवण और अंकुश राम-लक्ष्मण के साथ अपने सम्बन्ध को जानते थे। इसलिए वे लोग सापेक्ष विचार रखकर शस्त्र-प्रहार कर रहे थे; किन्तु राम-लक्ष्मण इस सम्बन्ध को जानते नहीं थे। अत: निरंकुश होकर शस्त्र-प्रहार कर रहे थे। (श्लोक १२९) विविध आयुधों द्वारा युद्ध करने के पश्चात् युद्ध को शीघ्र समाप्त करने की इच्छा से राम ने सारथी को रथ ठीक शत्रु के सम्मुख करने को कहा। कृतान्तवदन बोला, 'मैं क्या करूँ ? मेरे रथ के अश्व क्लान्त हो गए हैं। शत्रु ने शराघात से इनकी देह बींध डाली है। मैं चाबुक मारता हूं; किन्तु ये अपनी गति तेज करते ही नहीं हैं। रथ भी जर्जर हो रहा है। इतना ही नहीं, मेरी भुजाएँ भी शराघात से जर्जर हो गई हैं। अत: घोड़े की लगाम और चाबुक पकड़ने की भी अब इनमें शक्ति नहीं है।' (श्लोक १३०-१३२) राम बोले, 'मेरा वज्रावर्त धनुष भी चित्रस्थ-चित्र में अङ्कित धनुष सा शिथिल हो गया है। अतः कोई काम नहीं कर रहा है और यह मूसलरत्न भी शत्रु का नाश करने में असमर्थ हो गया है। अब तो इसमें मात्र धान कूटने की योग्यता रह गई है । यह हल-रत्न जो कि दुष्ट राजा रूपी हस्तियों को वशीभूत करने के लिए अंकुश रूप था, वह भी मात्र धरती-कर्षण करने योग्य रह गया है। जिन अस्त्रों की रक्षा देव करते हैं, जो अस्त्र सर्वदा शत्रुओं को विनष्ट करते हैं उन्हीं अस्त्रों की आज यह कैसी दशा हो गई __(श्लोक १३३-१३७) __इधर लवण के साथ युद्ध करते-करते राम के अस्त्र जिस प्रकार कार्य नहीं कर रहे थे उसी प्रकार लक्ष्मण के अस्त्र भी कार्य नहीं कर रहे थे। (श्लोक १३८) __ अंकुश ने लक्ष्मण के हृदय पर वज्र-सा प्रहार किया। उसके आघात से लक्ष्मण मूच्छित होकर गिर पड़े। लक्ष्मण को मूच्छित
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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