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________________ [239 'प्रभो, देवी सीता आपके विरह में व्याकुल विदेश में जीवन व्यतीत कर रही है। अब कूमारों का वियोग हो जाने से वे और अधिक दुःखी हो गई हैं। अतः आप यदि आदेश दें तो हम जाकर उन्हें यहाँ ले आएँ। यदि आप उन्हें नहीं बुलाएँगे तो पति-पुत्र विहीना वे मृत्यु को प्राप्त हो जाएँगी।' (श्लोक १६८-१७०) राम कुछ सोचकर बोले, 'सीता को यहाँ कैसे बुलाया जा सकता है। लोकोपवाद मिथ्या होने पर भी बहुत बड़ा अन्तराय है। मैं जानता हूं सीता सती है। वह भी अपनी आत्मा को पवित्र समझती है। यदि वह सब लोगों के सामने सतीत्व प्रमाणित करे तो मैं उस शुद्ध सती को ग्रहण कर सकता हूं।' (श्लोक १७१-१७३) ___'ऐसा ही होगा' कहकर वे वहाँ से चले गए। फिर उन्होंने नगर के बाहर एक विशाल मण्डप का निर्माण करवाया जिसमें पंक्तिबद्ध बैठने की व्यवस्था थी। उसी में सामने राजा, मन्त्री, नगरवासी, राम-लक्ष्मण और विभीषण, सुग्रीव आदि खेचर आकर बैठ गए। तब राम ने सीता को लाने का आदेश दिया। सुग्रीव विमान में बैठकर पुण्डरीकपुर पहुंचे। वे सीता को नमस्कार कर बोले, 'हे देवी, राम ने आपके लिए पुष्पक विमान भेजा है। अत: इस पर चढ़कर आप अयोध्या चलें ?' (श्लोक १७४-१७७) सीता बोली, 'राम ने मुझे अरण्य में भेज दिया था। उस दुःख की ज्वाला आज भी शान्त नहीं हुई है। अतः द्वितीय दुःख देने के लिए बुलाने वाले राम के पास मैं कैसे जाऊँ ?' (श्लोक १७८) ___ सुग्रीव ने पुनः नमस्कार कर कहा, 'हे देवी, क्रुद्ध न हों, राम ने आपकी शुद्धि का निश्चय किया है। मण्डप तैयार हो गया है। वे अन्यान्य राजा और पुनवासियों के साथ वहाँ बैठे हैं।' (श्लोक १७९) सीता ने तो शुद्धता की परिचायक परीक्षा पूर्व ही देनी चाहो थी। अतः सुग्रीव की यह बात सुनकर वे विमान पर चढ़ गईं। सुग्रीव सहित वे अयोध्या के निकट महेन्द्र उद्यान में उतरीं । वहाँ लक्ष्मण और अन्यान्य राजाओं ने अर्ध्य प्रदान कर उन्हें नमस्कार किया फिर लक्ष्मण और अन्य राजागण उनके सामने बैठकर बोले-'हे देवी, आप नगर और गृह में प्रवेश कर उन्हें पवित्र करें।' (श्लोक १८०-१८२)
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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