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सीता ने श्रद्धापूर्वक अन्न-जल देकर उनका सत्कार किया और कुशल-क्षेम पूछा। उन्होंने इसका प्रत्युत्तर देकर सीता की कुशलता पूछी। उन्हें अपने भाई के समान समझकर सीता ने आरम्भ से लेकर पुत्रोत्पत्ति तक का सारा वृत्तान्त सुनाया। यह सुनकर अष्टांग निमित्त के ज्ञाता दयानिधि सिद्धार्थ बोले, 'तुम व्यर्थ चिन्ता मत करो। कारण, लवण व अंकुश जैसे तुम्हारे दो पुत्र हैं । श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त ये दूसरे राम और लक्ष्मण हैं । ये तुम्हारा समस्त मनोरथ पूर्ण करेंगे।' इस प्रकार उन्होंने सीता को आश्वासन दिया।
(श्लोक ३९-४४) सीता ने तब साग्रह प्रार्थना कर अपने पुत्रों को पढ़ाने के लिए उन्हें रख लिया। सिद्धार्थ ने लवण और अंकुश को समस्त कलाओं में इस प्रकार कुशलता से शिक्षा प्रदान की कि वे देवों के लिए भी अजेय हो गए। समस्त कलाओं की शिक्षा प्राप्त करने में उन्हें इतने दिन लगे कि वे युवा हो गए। अब वे दोनों भाई वसन्त और कामदेव की तरह शोभायुक्त बन गए। (श्लोक ४५-४७)
वज्रजङ्ग ने अपनी रानी लक्ष्मीवती के गर्भ से उत्पन्न शशिचूला और अन्य बत्तीस कन्याओं के साथ लवण का विवाह कर दिया। तदुपरान्त अंकुश के लिए पृथ्वीपुर के राजा पृथु से उनकी रानी अमृतवती के गर्भ से उत्पन्न कन्या की माँग की। पराक्रमी पृथ ने उत्तर दिया-'जिसके वंश का कोई ठिकाना नहीं, उसे कन्या किस प्रकार दू?'
(श्लोक ४८-५०) ___ यह सुनकर वज्रजङ्घ कुपित हो गया और पृथ्वीपुर पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में वज्रजङ्ग ने पृथ के मित्र व्याघ्ररथ को बन्दी बना लिया। इससे राजा पृथ ने स्वमित्र पोतनपुराधिपति को सहायता के लिए बुला भेजा। कारण, विपत्ति के समय में मन्त्र की तरह मित्र का भी स्मरण किया जाता है। वज्रजङ्ग ने भी अपने पुत्र को बुना लिया। बहुत मना करने पर भी लवण और अंकुश उनके साथ युद्धक्षेत्र में आए।
(श्लोक ५१-५३) द्वितीय दिन उभय सेना में भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में बलवान् शत्र ने वज्रजङ्ग को पराजित कर दिया। मामा की सेना की दुर्गति देखकर लवण और अंकुश ने क्रुद्ध होकर निरंकुश हस्ती की तरह अनेक प्रकार के शस्त्रों की वर्षा कर शत्रु पर आक्रमण कर .