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महासती सीता कहाँ है ? जिसे मैंने लोगों की बात में आकर वन में छुड़वा दिया ।'
( श्लोक २५-२६) महासती सीता अपने
लक्ष्मण बोले, 'हे स्वामी ! अब तक प्रभाव से ही श्वापद प्राणियों से बची हुई हैं दुःख में मरने के पूर्व ही उन्हें खोजकर ले आएँ
।
अत: आपके विरह।' ( श्लोक २७-२८ )
लक्ष्मण की बात सुनकर राम सेनापति कृतान्तवदन और अन्य खेचरों को साथ लेकर विमान द्वारा उसी वन में पहुंचे जहाँ कृतान्तवदन सीता को छोड़कर आया था । राम ने प्रत्येक जलाशय, प्रत्येक पर्वत, प्रत्येक वृक्ष, प्रत्येक लता को छान मारा; किन्तु सीता कहीं नहीं मिली । अब राम और दुःखी हो गए । वे सोचने लगेलग रहा है कि सिंह या अन्य किसी हिंस्र श्वापद ने उसे खा डाला है | बहुत खोजने के पश्चात् भी जब सीता नहीं मिली तो वे निराश होकर अयोध्या लौट आए। सारे नगर में यह बात फैल गई । नगरवासी बार-बार सीता के गुणों की प्रशंसा और राम की निन्दा करने लगे । राम ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से सीता की अन्त्येष्टि-क्रिया सम्पन्न की । राम को समस्त संसार सीतामय लगने लगा । उनका हृदय, उनके नेत्र, उनकी वाणी सीता के सिवाय कुछ नहीं कह रहे थे। सीता कहाँ थी उस समय, राम यह नहीं जान पाए ।
( श्लोक २९-३४)
सीता ने वज्रजङ्घ के यहाँ युगल पुत्रों को जन्म दिया । उनका नाम रखा गया - अनङ्गलवण और मदनांकुश | महान् हृदयी राजा वज्रजङ्घ ने अपने पुत्र के जन्मोत्सव से भी ज्यादा उत्सव मनाया । धात्रियाँ उनका लालन-पालन करने लगीं । क्रीड़ा करते हुए दोनों दुर्ललित भ्राता भूचारी अश्विनीकुमारों की तरह बड़े होने लगे । अल्प दिनों में ही दोंनों बालक बाल्य-कला ग्रहण और हस्ती - शावक की तरह शिक्षा लाभ के योग्य होकर वज्रजङ्घ के नेत्रों को महामहोत्सव की तरह आनन्दित करने लगे ।
( श्लोक ३५-३८ ) उसी समय सिद्धार्थ नामक एक अणुव्रतधारी सिद्धपुत्र जो कि विद्याबल की संवृद्धि से सम्पूर्ण कला व शास्त्रों में विचक्षण, आकाशगामी होने के कारण मेरुगिरि स्थित चैत्यों की त्रिकाल वन्दना करते थे, एक दिन भिक्षा के लिए सीता के घर आए ।