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________________ 226 अचेत और सचेत होती हुई फिर कुछ स्वस्थ होकर बोली, 'अयोध्या यहाँ से कितनी दूर है ? राम कहाँ हैं ?' (श्लोक ३१७-३१८) सेनापति बोला, 'हे देवी! अयोध्या यहाँ से बहुत दूर है। आप अयोध्या के विषय में क्यों पूछ रही हैं और ऐसी उग्र आज्ञा प्रदान करने वाले राम के विषय में भी आप क्यों पूछ रही हैं ?' (श्लोक ३१९) सेनापति की बात सुनकर रामभक्त सीता बोली, 'हे भद्र ! तुम राम को मेरा सन्देश देना-'आप यदि लोकपवाद से इतने भयभीत हो गए हैं तो मेरी परीक्षा क्यों नहीं ली ? लोक में शङ्का होने पर दिव्यादि द्वारा परीक्षा ली जाती है। मैं अभागिन हूं। अतः इस वन में स्व-कर्मों का फल भोग करूँगी; किन्तु आपने जो कार्य किया है वह आपके विवेक और कुल के सर्वथा अयोग्य है । जिस प्रकार दुर्जनों की बात सुनकर आपने मेरा परित्याग किया है उसी प्रकार दुर्जन लोगों के कहने से आप जिन धर्म का परित्याग मत कर दीजिएगा।' (श्लोक ३२०-२२३) ऐसा कहकर सीता पुनः मूच्छित हो गई। स्वस्थ होने पर फिर बोली-'हाय, राम मेरे बिना कैसे जीवित रहेंगे ? हा हन्त ! मैं मारी गई ! हे वत्स कृतान्त, तुम राम को मेरा कल्याण और लक्ष्मण को मेरा आशीर्वाद देना। तुम्हारा पथ विघ्न रहित हो ? अब तुम शीघ्र राम के पास लौट जाओ।' (श्लोक ३२४-३२५) सेनापति कृतान्त ने बड़े कष्ट से अपने मन को समझाया और सीता को वन में छोड़कर अयोध्या की और चल पड़े। जातेजाते सोचने लगे-राम का विचार सीता के एकदम विपरीत है फिर भी सीता राम के प्रति कितनी भक्तिपरायण है। सीता सती शिरोमणि महासती है। (श्लोक ३२६) अष्टम सर्ग समाप्त नवम सर्ग सीता भयावर्त होकर पागलों की तरह इधर-उधर घूमने लगी और पूर्व कर्म दूषित स्व-आत्मा की निन्दा करने लगी। बारबार वह जोर से रोने लगी और गिर गिर कर पड़ने लगी।
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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