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________________ [227 इसी प्रकार वह एक दिशा में जा गिरी थी। उसी समय उसने सामने से एक सैन्य-दल को आते देखा। वह वहीं खड़ी हो गई और स्थिरमना होकर नमस्कार महामन्त्र का जाप करने लगी। (श्लोक १-३) सैनिकों ने सीता को देखा। उन्हें देखकर वे डर गए। वे सोचने लगे-यह अपूर्व दिव्यरूपसम्पन्ना सुन्दरी कौन है जो इस प्रकार अकेली अरण्य में घूम रही है ? (श्लोक ४) __ सीता कुछ क्षण स्थिर रही; किन्तु अपनी अवस्था याद आते ही वह पुनः रो पड़ी। उसके उस करुण-क्रन्दन को उस-सैन्य दल के राजा ने सुना। सीता के मनस्ताप और क्रन्दन को सुनकर राजा को लगा यह कोई गर्भिणी और सती स्त्री है। (श्लोक ५) वह दयाल राजा सीता के निकट गया। राजा को देखकर सीता शंकित हो गई। उसने अपने अलङ्कार खोलकर राजा के सम्मुख रख दिए। (श्लोक ६-७) राजा बोले, 'बहन डरो मत । ये अलङ्कार तुम्हारे ही हैं, तुम धारण करो। तुम्हारा पति कौन निर्दयी शिरोमणि है जिसने तुम्हें इस अवस्था में परित्याग कर दिया? सब कुछ स्पष्ट रूप में बताओ। मन में कोई शङ्का मत रखो। तुम्हारे कष्ट को देखकर मुझे भी कष्ट हो रहा है।' (श्लोक ८) राजा के मन्त्री सुमति बोले, 'ये पुण्डरीकपुर के राजा बज्रजंघ हैं। इनके पिता का नाम गजवाहन है। बन्धुदेवी नामक रानी के गर्भ से इनका जन्म हुआ है। ये महासत्त्वसम्पन्न परनारी सहोदर और परम श्रावक हैं। ये इस वन में हाथी पकड़ने आए थे। अपना कार्य समाप्त कर ये लौट रहे हैं। इसी बीच इन्होंने तुम्हारा क्रन्दन सुना। तुम्हारा क्रन्दन सुनकर इन्हें दुःख हुआ। अतः हमारे निकट आए हैं । तुम्हारा जो दुःख है वह इन्हें बताओ।' (श्लोक ९-११) सीता ने उनकी बात पर विश्वास कर रोते-रोते अपनी सारी कथा बताई। यह सुनकर राजा और मन्त्री दोनों ही रो पड़े। तदुपरान्त राजा निष्कपट भाव से बोले, 'तुम मेरी धर्म-बहन हो। कारण, एक धर्मावलम्बी परस्पर बन्धु ही होते हैं। तुम मुझे अपने भाई भामण्डल के समान समझो और मेरे घर चलो। पति
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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