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दिन उन्होंने पुनः गुप्तचरों को भेजा। (श्लोक २८७-२९३) . राम सोचने लगे सीता के लिए मैंने राक्षस कुल को भयङ्कर रूप में नष्ट किया है, उसी सीता पर यह कैसा लांछन ? मैं जानता हूं सीता महासती है। रावण स्त्रीलोलुप था; किन्तु हमारा कुल निष्कलङ्क है। अतः मुझे क्या करना चाहिए ? (श्लोक २९४-२९५)
राम के पास लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण आदि बैठे थे। उसी समय गुप्तचर आए। लोग सीता के विषय में जो बातें कहते हैं वह सुनाई। सुनकर लक्ष्मण क्रोधित हो गए। वे भकूटि चढ़ाकर बोले, 'जो मिथ्या कारण से दोष की कल्पना करते हैं, सती सीता की निन्दा करते हैं, मैं उनके लिए कालस्वरूप हं।'
(श्लोक २९६-२९७) राम बोले, 'शान्त हो जाओ भाई, मैंने नगर का समाचार लाने के लिए इन लोगों को नियुक्त किया था। उन्होंने पहले भी मुझे यह बात कही थी। मैं स्वयं भी यह सुनकर आया हूं और ये लोग भी मेरे कहने से ही यह समाचार लाए हैं । अतः सीता को मैंने जैसे स्वीकार किया था उसी प्रकार अब उसका परित्याग करूँगा ताकि लोग मुझे कलङ्कित न करें।' (श्लोक २९८-२९९)
लक्ष्मण बोले, 'आर्य, लोगों के कहने से सीता का परित्याग न करें क्योंकि लोग जो मन में आता है वही कह देते हैं । उनका मुंह कोई बन्द नहीं कर सकता। वे राज्य में सुव्यवस्था होते हुए भी राजा को दोषी ठहराते हैं। अतः राजा को ऐसे लोगों को दण्ड देना चाहिए या फिर उनकी उपेक्षा करनी चाहिए।
(श्लोक ३००-३०१) राम बोले, 'यह ठीक है. लोग ऐसे ही होते हैं। फिर भी जो बात सबके विरुद्ध है, जिसे कोई पसन्द नहीं करता, यशस्वी पुरुषों के लिए उसका त्याग करना उचित है।' (श्लोक ३०२)
तदुपरान्त राम ने कृतान्तवदन नामक सेनापति को बुलवाया और बोलं, 'यद्यपि सीता गर्भवती है फिर भी उसे अरण्य में ले जाकर छोड़ आओ।' यह सुनकर लक्ष्मण रो पड़े और राम के चरणों को पकड़ कर बोले, 'आर्य, महासती सीता का परित्याग अच्छा नहीं है।' राम ने कहा, 'अब तुम इस विषय में मुझे और कुछ मत कहो।' ऐसा सुनकर लक्ष्मण वस्त्र से मुंह दबाए रोते