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नामक अधिकारी जो कि सबका प्रमुख था अत्यन्त सावधानीपूर्वक इस प्रकार कहने लगा, 'हे स्वामिन् ! एक बात है जिसे कहने को एकान्त की आवश्यकता है। यदि नहीं कहते हैं तो हम स्वामी की प्रवंचना करेंगे; किन्तु वह अत्यन्त कट है। हे देव, देवी सीता पर एक कलङ्क लगा है। जिसका होना सम्भव नहीं है पर लोग सीता के लिए वही सब कह रहे हैं। नीति वाक्य यही कहता है कि जो बात युक्तिसंगत होती है पण्डित उस पर अविश्वास नहीं करते। लोग कह रहे हैं रतिक्रीड़ा की इच्छा से रावण ने सीता का हरण किया था, उसे अपते घर में अकेला रखा था। सीता बहत दिनों तक उसके घर में रही। सीता रावण पर आसक्त थी या विरक्त इसमें क्या आनी-जानी है ? रावण स्त्री-लम्पट था । अतः बिना भोगे सीता को छोड़ा नहीं होगा। भोग चाहे सीता को समझाकर करे या जबरदस्ती करे। लोग जो कुछ कह रहे हैं हमने उसे आपके सम्मुख निवेदन कर दिया। इस युक्तिसंगत कलङ्क को आप सहन नहीं करेंगे। हे देव, आपने जन्म से ही अपने कुल की भाँति कीर्ति अजित की है। अत: आप उस मलिन कलङ्क को सहकर स्वयश को मलिन न करें।'
श्लोक २८०-२८६) राम कुछ क्षण चप रहे। मन ही मन सोचने लगे सीता कलङ्क की अतिथि हो गई है। उसके प्रेम का परित्याग करना भी कठिन है; किन्तु कुछ क्षणों पश्चात् अत्यन्त धैर्यपूर्वक बोले, 'हे महापुरुषगण, आपने यह अच्छा किया जो मुझे सचेत कर दिया। राजभक्त सेवक कभी किसी बात की अपेक्षा नहीं रखते। मात्र स्त्री के लिए मैं ऐसा कलङ्क सहन नहीं करूंगा।' ऐसा कहकर राम ने अधिकारियों को बिदा किया और उस रात्रि खुद अकेले भेष बदल कर प्रासाद के बाहर निकले । नगर भ्रमण करते हुए स्थान-स्थान पर उन्होंने लोगों को यह कहते सुना, "रावण सीता को ले गया। दीर्घकाल तक सीता रावण के घर रही फिर भी राम उसे ले आए हैं। और अभी भी उसको सती समझते हैं । कैसे हो सकता है यह ? स्त्री-लम्पट रावण ने सीता को ले जाकर क्या बिना भोगे छोड़ा है ? राम ने बिलकुल सोचा ही नहीं। सच ही कहा है आसक्त व्यक्ति दोष नहीं देखता।' इस प्रकार सीता के कलङ्क की बातें सुनकर राम पुनः प्रासाद को लौट गए। दूसरे