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________________ 222) बसन्त ऋतु आई। राम सीता के निकट गए और बोले, 'भद्र, तुम गर्भ के कारण खिन्न हो। अतः तुम्हारे विनोद के लिए वसन्त ऋतु आ गई है। वकुल आदि वृक्ष स्त्रियों के दोहद से ही विकसित होते हैं। अतः चलो हम महेन्द्र उद्यान में क्रीड़ा करने चलें।' सीता बोली, 'हे नाथ मुझे तो देवार्चन करने का दोहद उत्पन्न हुआ है। अतः उस उद्यान के विविध सुगन्धित पुष्पों द्वारा मेरे इस दोहद को पूर्ण करें।' (श्लोक २६५-२६७) राम ने अति श्रेष्ठ देवार्चन करवाया। फिर वे सीता को लेकर सपरिवार महेन्द्र उद्यान में गए। वहाँ आनन्दपूर्वक बैठकर राम ने वसन्तोत्सव देखा। वहाँ एक ओर नगरवासी क्रीड़ा कर रहे थे और अन्य ओर अर्हतपूजा का व्यापक आयोजन भी हो रहा था। उसी समय हठात् सीता का दाहिना नेत्र फड़का। वह शङ्का ग्रस्त होकर राम से बोली। राम ने इसे अशुभ कहा। तब सीता बोली, 'मुझे राक्षस द्वीप में रखकर भी क्या दैव अभी तक तप्त नहीं हुए ? निर्दय देव क्या पुनः मुझे आपके वियोग से भी अधिक कोई दुःख देना चाह रहा है ? यदि ऐसा नहीं है तो अशुभकारी संकेत क्यों हो रहा है ?' (श्लोक २६८-२७२) राम बोले, 'देवी दुःख मत करो कारण सुख और दुःख तो मनुष्य के कर्माधीन हैं। प्राणी मात्र को उसे अवश्य भोगना होता है। अतः घर जाकर देवताओं की पूजा करो और सत्पात्र को दान दो। कारण विपत्ति में धर्म ही एकमात्र शरण है।' सीता निज गह लौट गई और प्रभु पूजा एवं सत्पात्रों को दान देने में रत हो गई। (श्लोक २७३-२७६) विजय, सुरदेव, मधुमान, पिंगल, शूलधर, काश्यप, काल और क्षेम नामक राजधानी के बड़े-बड़े अधिकारी जो कि नगरी का यथार्थ वृत्तान्त जानने के लिए नियुक्त थे एक दिन राम के पास आए और वृक्ष की तर थर-थर काँपने लगे। वे राम से कुछ कह ही नहीं सके । कारण राजतेज बड़ा दुःसह होता है । तब राम उनसे बोले, 'हे नगरी के महान् अधिकारीगण, आप लोगों को जो कुछ कहना है कहो । कारण आप लोग एकान्त हितकारी हो इसलिए निर्भय हो।' (श्लोक २७७-२७९) राम का कथन सुनकर वे कुछ स्थिर हुए। उनमें विजय
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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