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________________ 220] जिन-बिम्ब स्थापित करवाओ ताकि इस नगर में कभी भी व्याधि न हो।' (श्लोक २३५-२३६) तदुपरान्त सप्तर्षि वहाँ से उड़कर अन्यत्र चले गए। शत्रुघ्न ने प्रत्येक घर में जिन-बिम्ब स्थापित करवाया। (श्लोक २३७) उस समय वैताढय गिरि की दक्षिण श्रेणी की अलङ्कार रूपा रत्नपुर नामक नगरी में रत्नरथ नामक राजा राज्य करते थे। उनके चन्द्रमुखी नामक एक रानी थी। उसके गर्भ से मनोरमा नामक एक पुत्री का जन्म हुआ। उसका रूप भी उसके नामानुसार मनोरम और सुन्दर था। वह कन्या क्रमशः यौवन को प्राप्त हुई। एक दिन राजा जब यह चिन्ता कर रहे थे कि कन्या किसे दें ? उसी समय अकस्मात् नारद वहा उपस्थित हए। उन्होंने कहा कि कन्या लक्ष्मण के योग्य है। यह सुनकर गोत्र-वैर के कारण रत्नरथ का पुत्र ऋद्ध हो गया और नेत्रों के संकेत से अपने सेवकों को नारद मुनि को मारने की आज्ञा दी। बुद्धिमान् नारद सेवकों को उठते देख उनका अभिप्राय समझ गए और तत्काल उड़कर लक्ष्मण के पास पहुंचे। उस कन्या का रूप एक पट पर अङ्कित कर लक्ष्मण को दिखाया और अपने साथ घटी घटना उन्हें सुना दी। कन्या का रूप देखकर लक्ष्मण उस पर आसक्त हो गए। अतः वे राम सहित स्व और राक्षस एवं वानरों की सेना लेकर रत्नपुर में उपस्थित हुए । अल्प समय में ही लक्ष्मण ने रत्नपूर को जीत लिया। रत्नरथ ने राम को श्रीदामा और लक्ष्मण को अपनी मनोरमा नामक कन्या दी। (श्लोक २३८-२४६) तदुपरान्त राम और लक्ष्मण वैताढय गिरि की समस्त दक्षिण श्रेणी जयकर अयोध्या लौट आए और सुखपूर्वक राज्य करने लगे। (श्लोक २४७) लक्ष्मण के सब मिलाकर सोलह हजार रानियाँ और बढ़ाई सौ पुत्र थे। उनमें विशल्या, रूपवती, वनमाला, कल्याणमाला, रत्नमाला, जितपद्मा, अभयवती और मनोरमा-ये आठ पटरानियाँ थीं। इनके जो पुत्र मुख्य हए उनके नाम हैं-विशल्या के श्रीधर, रूपवती के पृथ्वोतिलक, वनमाला के अर्जुन, जितपद्मा के श्रीकेशी, कल्याणमाला के मङ्गल, मनोरमा के सुपार्श्वकीति, रत्नमाला के विमल और अभयवती के सत्यकार्तिक । (श्लोक २४८-२५२)
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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