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218) महोत्सव एवं धूमधाम के साथ अचल को नगर में प्रवेश करवाया।'
(श्लोक २०५-२०८) 'तत्पश्चात् राजा चन्द्रप्रभ ने छोटा होने पर भी अचल को सिंहासन पर बैठाया और भानुप्रभ आदि को निर्वासित करना चाहा । अचल ने आग्रहपूर्वक पिता को रोककर उन्हें अपना देहरक्षक बना लिया।
(श्लोक २०८-२०९) ____ 'एक दिन अचल ने नाट्यशाला में अङ्क को देखा-देखा प्रतिहारीगण ने उसे धक्का देकर बाहर निकाल दिया । अचल ने उसे पुकारा और उसे उसकी जन्मभूमि श्रावस्ती का राजा बना दिया । अद्वितीय मैत्री सम्पन्न वे दोनों एक साथ राज्य करने लगे। अन्त में दोनों ने समुद्राचार्य से दीक्षा ग्रहण की और मृत्यु को प्राप्त कर ब्रह्म देवलोक में उत्पन्न हुए। वहाँ से चलकर अचल' के जीव ने तुम्हारे अनुज शत्रुघ्न के रूप में जन्म लिया। पूर्वजन्म के मोह के कारण उसने मथुरा जाने का आग्रह किया। अङ्क का जीव भी वहाँ से च्युत होकर तुम्हारा सेनापति कृतान्तवदन बना।' ऐसा कहकर मुनि वहाँ से विहार कर गए। रामचन्द्र आदि भी अयोध्या लौट आए।
(श्लोक २१०-२१४) प्रभापुर के राजा श्रीनन्दी की रानी धमणी के गर्भ से सात पुत्रों ने जन्म ग्रहण किया। उनके नाम क्रमशः सुरनन्द, श्रीनन्द, श्रीतिलक, सर्वसुन्दर, जयन्त, चामर और जयमित्र रखा गया। फिर उनके आठवाँ पुत्र हुआ। वह जब एक मास का हुआ तभी श्रीनन्दी ने उसे राज्य देकर अपने सातों पुत्रों सहित दीक्षा ग्रहण कर ली । श्रीनन्दी तपस्या कर मोक्ष को प्राप्त हो गए और सुरनन्दादि सातों मुनियों ने जजाचरणलब्धि प्राप्त की। वे महर्षि एक बार विहार करते हुए मथुरा आए। उस समय वर्षा ऋतु आरम्भ हो गई थी। अतः वे एक पर्वत की गुफा में चातुर्मास व्यतीत करने के लिए अवस्थित हो गए। वे अट्ठाई आदि अनेक प्रकार की तपस्या करने लगे। पारणे के दिन वे वहाँ से उड़कर दूर चले जाते और पारणा कर पुनः वहीं आ जाते। उनके प्रभाव से चमरेन्द्र ने जो व्याधि मथुरा में उत्पन्न की थी वह नष्ट हो गई।
(श्लोक २१५-२२१) एक बार वे मुनिगण पारणा करने अयोध्या गए। वे अहंदत्त