________________
[217
की। अतः कल्याण नामक मनि ने उसे छुड़वा लिया। मुक्त होकर उसने दीक्षा ग्रहण की और तपस्या कर देवलोक में गया । वहाँ से च्युत होकर मथुरा में चन्द्रप्रभ राजा की रानी कंचनप्रभा के गर्भ से अचल नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। राजा चन्द्रप्रभ उसे बहुत प्यार करते थे। उसके भानुप्रभ आदि आठ अग्रज सहोदर थे। पिता इसे सबसे अधिक प्यार करते हैं अत: वे इसे ही राज्य देंगे सोचकर उसकी हत्या के विषय में वे सोचने लगे। मन्त्रियों को यह बात मालम होने पर उन्होंने अचल को सतर्क कर दिया । अचल वहाँ से भाग कर वन में चला गया। वन में चलते समय एक बड़ा कांटा उसके पैर में चभ गया। उस पीड़ा से अचल चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगा।
(श्लोक १९२-२००) _ 'उसी समय श्रावस्ती नगरी का अधिवासी अङ्क जिसको उसके पिता ने घर से निकाल दिया था, माथे पर लकड़ी का गट्ठर लिए उधर ही से जा रहा था। उसने अचल को देखा । दया उमड़ने के कारण उसने लकड़ी का गठ्ठर नीचे उतारा और उसके पाँव का काँटा निकाल दिया। अचल ने खुश होकर उसके हाथ पर काँटा रखा और बोला, 'भद्र, तुमने बहुत अच्छा कार्य किया है । तुम मेरे परम उपकारी हो। जिस दिन तुम सुनो कि अचल मथुरा का राजा हो गया है, उस दिन तुम मथुरा चले आना।'
(श्लोक २००-२०२) वहाँ से अचल कौशाम्बी चला गया। वहाँ उसने राजा इन्द्रदत्त को सिंहगुरु से धनुष का अभ्यास करते देखा। उसने भी सिंहाचार्य और इन्द्रदत्त को अपना धनुष संचालन चातुर्य दिखाया। इससे प्रसन्न होकर इन्द्रदत्त ने अपनी कन्या दत्ता का विवाह उसके साथ कर दिया। कुछ भूमि भी दी। सैन्य-बल पाकर अचल ने अङ्ग आदि कई देश को जीत लिया। (श्लोक २०३-२०४)
'तदुपरान्त उसने सेना लेकर मथुरा पर आक्रमण किया। वहाँ उसने स्व अग्रज भानुप्रभ आदि को युद्ध में बन्दी बना लिया। राजा चन्द्रप्रभ ने उन्हें छड़ाने के लिए मन्त्रियों को भेजा। अचल ने मन्त्रियों को सारी बात बताई। मन्त्रियों ने लौटकर राजा को सब कुछ बताया। यह सुनकर चन्द्रप्रभ बहुत प्रसन्न हुए एवं खब