________________
216]
वाला शत्रुघ्न इस समय मथुरा में है, मैं उसे मारने जा रहा हूं ।'
( श्लोक १८० - १८२) वेणुदारी इन्द्र बोले, 'रावण ने धरणेन्द्र से अमोघ विजयाशक्ति प्राप्त की थी । उस शक्ति को भी पुण्यवान् लक्ष्मण ने जीत लिया और रावण का वध कर दिया । उसके सामने रावण का सेवक मधु तो है ही क्या ? उसी लक्ष्मण की आज्ञा से शत्रुघ्न ने मधु को युद्ध में मारा है ?'
( श्लोक १८३-१८४)
चमरेन्द्र बोले, 'उस अमोघ शक्ति को लक्ष्मण ने विशल्या के प्रभाव से जीता था; किन्तु अब विशल्या विवाहित है अतः अब उसका प्रभाव नहीं है । अब वह कुछ नहीं कर सकती । अत: मैं जाकर उसकी हत्या अवश्य करूँगा ।' (श्लोक १८५-१८६) ऐसा उत्तर देकर क्रोध से भरे चमरेन्द्र शत्रुघ्न के देश मथुरा गए । उन्होंने शत्रुघ्न के सुशासन में सबको स्वस्थ देखा । चमरेन्द्र यही सोचकर कि स्वस्थ प्रजा में नाना प्रकार के उपद्रव कर शत्रु को विचलित करना ही उत्तम है । अतः उन्होंने मथुरा की प्रजा में विभिन्न प्रकार की व्याधियाँ फैलाईं । कुल देवों ने आकर शत्रुघ्न को व्याधियों का कारण बताया। तब शत्रुघ्न राम और लक्ष्मण के पास गए । ( श्लोक १८७ - १८९ ) उसी समय देशभूषण और कुलभूषण मुनि विहार करते हुए अयोध्या आए । राम-लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने उनके निकट जाकर चरण वन्दना की । तब राम ने मुनि से पूछा, 'शत्रुघ्न ने मथुरा लेने का आग्रह क्यों किया ?' ( श्लोक १९०-१९५) देशभूषण बोले, शत्रुघ्न का जीव अनेक बार मथुरा में उत्पन्न हुआ था। एक बार उसने श्रीधर ब्राह्मण के रूप में जन्म ग्रहण किया था । वह रूपवान् और साधुओं का सेवक था । एक समय जब वह राह से गुजर रहा था उसी समय राजा की मुख्य रानी ललिता ने उसे देखा । उसके मन में विकार उत्पन्न हुआ । अतः उसने उसे काम-केलि के लिए बुलवाया था । उसी समय राजा भी सहसा वहाँ उपस्थित हो गए । राजा को देखकर ललिता क्षुब्ध हो गई; किन्तु वह तुरन्त चोर-चोर कहकर चिल्लाने लगी । राजा ने भी इस प्रकार श्रीधर को पकड़कर सेवकों द्वारा वध्यभूमि में भिजवा दिया । उसने उसी समय दीक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा