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भरत के दीक्षा लेने के पश्चात् अनेक राजा, खेचर और प्रजाजनों ने भक्ति भाव से राम को राज्यासन ग्रहण करने को कहा। राम बोले, 'लक्ष्मण वासुदेव हैं, इसलिए उसका राज्याभिषेक करो।' वैसा ही किया गया। अष्टम वासुदेव और बलदेव तीन खण्ड भरत पर राज्य करने लगे। (श्लोक १५३-१५५)
राम ने विभीषण को राक्षसद्वीप, सुग्रीव को कपि द्वीप, हनुमान को श्रीपुर, विराध को पाताल लङ्का, नील को ऋक्षपुर, प्रतिसूर्य को हनुपुर, रत्नजटी को देवोपगीत नगर और भामण्डल को वैताढय पर्वत का रथुनुपुर नगर जहाँ उसकी पूर्व राजधानी थी प्रदान किया। अन्य को भी भिन्न-भिन्न राज्य दिए।
(श्लोक १५६-१५९) तदुपरान्त राम शत्रुघ्न को बोले, 'वत्स, जो देश तुम्हें पसन्द हो ग्रहण करो।' शत्रुघ्न बोले, 'हे आर्य, मुझे मथुरा का राज्य दें।' राम बोले, 'वत्स, मथुरा का राज्य लेना दुष्कर है। कारण वहाँ मधु नामक एक राजा राज्य करते हैं। उसे चमरेन्द्र ने पहले एक त्रिशूल दिया था, उसका यह गुण है कि वह दूर से ही शत्रु का सहार कर पुनः मधु के हाथों में लौट जाता है।' (श्लोक १५९-१६०)
शत्रघ्न बोले, 'हे देव, आप यदि राक्षस कुल का नाश कर सकते हैं तो क्या मैं आपका छोटा भाई होकर मधु को परास्त नहीं कर सकूँगा ? निश्चय ही कर सकूगा। अतः आप मुझे मथुरा का राज्य दें। मैं स्वयं मधुराजा का उपाय कर लगा।'
(श्लोक १६१-१६२) राम ने शत्रुघ्न का अत्यन्त आग्रह देख कर उसे मथुरा जाने की आज्ञा दे दी। बोले, 'भाई, मधु जब त्रिशूल रहित प्रमाद में पड़ा हो, उसी समय उससे युद्ध करना ।' तदुपरान्त राम ने शत्रुघ्न को अक्षय बाण युक्त दो तूणीर दिए और कृतान्त बदन नामक सेनापति को उनके साथ कर दिया। परम विजय की आशा वाले लक्ष्मण ने भी उन्हें अग्निमुख बाण और अपना अर्णवावर्त धनुष दिया।
(श्लोक १६३-१६६) शत्रुघ्न यात्रा करते हुए कुछ दिनों के मध्य ही मथरा के निकट पहुंच गए और नदी तट पर छावनी डाली। उन्होंने जानकारी के लिए गुप्तचरों को भेजा। वे लौटकर आए और बोले,